@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: विवाद
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रविवार, 2 जुलाई 2017

... और तुम घंटा बजाओ

ल पहली बार अंतर्राष्ट्रीय  हिन्दी ब्लॉग दिवस मनाया गया। इस दिन अनेक पुराने ब्लागरों ने पोस्टें लिखीं। एक जमाना था जब हम लगभग रोज कम से कम एक पोस्ट लिखा करते थे। कभी कभी दो या अधिक भी हो जाती थीं। तीसरा खंबा पर यह सिलसिला जारी है। अनवरत पर लगभग सन्नाटा है। अब ब्लॉग दिवस के बहाने यह सन्नाटा टूटा है तो यह भी कोशिश है कि रोज ब्लाग पर कुछ न कुछ लिखा जाए। चलो कुछ लिखते हैं ....

मेरे पास तीसरा खंबा पर औसतन 300-400 समस्याएँ प्रतिमाह प्राप्त होती हैं। कभी कभी लोग केवल अपनी गाथा लिखते हैं लेकिन वे कोई समाधान नहीं चाहते। या तो वे जानते हैं कि इस का कोई ऐसा समाधान नहीं है जो कानून उन्हें दे सकता हो। उन की समस्याएँ समाज, कानून और न्यायव्यवस्था में बड़ा बदलाव चाहती हैं। वह बदलाव तो तब होगा जब होगा। अभी तो उस बदलाव के लिए पर्याप्त आवाज तक नहीं उठती है। खैर!

पिछले सप्ताह मेरेे पास एक सज्जन ने सिवान, बिहार से अपनी गाथा लिख भेजी है। उन का मकसद था कि उन की गाथा और लोग भी जानें। तो मैं उन की गाथा तनिक भाषा. व्याकरण और विराम चिन्हों के सुधार के बाद एक शीर्षक अपनी ओर से देते हुए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ...


और तुम घंटा बजाओ

मेरी शादी 10.12.2009 को हिन्दू रीति से 5 रुपया दहेज़ में सम्पन्न हुई। मैं दहेज़ के खिलाफ रहता हूँ, शादी के 2 दिन बाद बहुभोज के दिन पत्नी का जीजा और उसकी बुवा का लड़का और एक उसकी बहन आई। मेरे सामने ही उसका बहनोई उसके स्तनों पे हाथ रख के बात करने लगा और मुझे देखते ही उसने हाथ हटा लिया। मैंने पत्नी से पूछा तो बोली मज़ाक कर रहे थे तो मैंने डांट दिया है। मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

मुंह दिखाई मैंने उसको 20000 रुपया दिया कि जरुरत के अनुसार खर्च करना। फिर बीच में उसका अपना भाई आया और मिल कर चला गया। करीब 2 महीने बाद मुझे कुछ पैसों की जरुरत पड़ी तो माँगा, उस ने 10000 रुपया दिया। पूछा और क्या किया? तो बोली हिसाब नहीं पूछा जाता है पत्नी से। इस बात पर मैंने काफी डांट डपट की तो बोली भाई को दी हूँ, उस से क्या हो गया। मैंने कहा वही मुझे बोल कर भी तो दे सकती थी।

बहुभोज के दूसरे दिन रात को उसके जीजा का फोन आया रात को 8:30 पे। मोबाइल में कॉल रिकॉर्डिंग रखता हूँ मैं, उसका जीजा उसको बोला जल्दी सेक्स मत करने देना और अगर जबरदस्ती करे तो चिल्लाने लगना। उसको शक नहीं होगा, वरना पकड़ी जाओगी। मुझे रिकॉर्डिंग सुनकर बड़ा दुःख हुवा, अपना दर्द किसको कहता, शर्म के मारे बात को दबा लिया। शादी के 4 महीनों बाद उसको घुमाने उसके घर ले गया। मैं उसके यहाँ रखा फोटो एल्बम देखने लगा। उस में मेरी पत्नी का उसके जीजा के साथ लवर-पोज़ में फोटो था। उसके बुवा के लड़के के साथ फोटो था। मुझे अब बर्दास्त नहीं हुआ तो पत्नी को पूछा। तो उसकी माँ ने सुन लिया और मुझे बोली उस से क्या हो गया? कोई घटने वाला सामान थोड़े है जो आप चिल्ला रहे हैँ। उस से क्या हो गया जीजा से मिल ली तो आप ज्यादा मत चिल्लाइये वरना जेल में डलवा देंगे। मैं काफी परेशान हो गया, फिर भी पत्नी को घर ले के आ गया 2 दिन में ही। उसके 5 महीने बाद मेरे ससुर आये बोले बिदाई कीजिये। मैंने मना किया, लेकिन मेरे घरवालों ने मुझे समझा कर उसको भेज दिया। फिर मैं 15 दिन बाद गया ससुराल बिदाई कराने तो मेरा ससुर बोला 6 महीना यहीं रहेगी। आप यहीं पे खर्चा दे दीजिये। इस बात पर मेरी ससुर से कहा सुनी हुई काफी दिक्कतों के बाद मेरी पत्नी मेरे साथ आने को तैयार हुई।

आने के 4 महीने बाद बिलकुल यही घटना फिर हुई फिर काफी बातचीत के बाद आई मेरे साथ। उसके बाद 2011 में मुझे एक बेटा हुआ, ऑपरेशन से। बेटे के जन्म के 3 महीने बाद ही वो लोग फिर आ गए बिदाई कराने। तब मुझसे उनका बहुत झगड़ा हुआ कि एक तो आपकी बेटी अपना दूध नहीं पिला रही लड़के को, दूध सुखाने की दवा चला ली और आप इसको डांटने के बजाय ले जाने को तैयार हैं। तो ससुर बोले कि घर पे ले जाकर समझायेंगे। मैंने मना किया तो मेरी पत्नी तैयार हो कर बोली अपना लड़का रखो मैं जा रही हूँ, और वो चली गई।

फिर 2 महीने की मसक्कत के बाद आई। फिर 4 महीने बाद वही घटना, लड़का छोड़ के चली गई। वहाँ 20 दिन रही और मेरे पास कॉल की कि मैं प्रेग्नेंट हूँ, पैसा भेजिए अबोर्शन कराना है। तो मैने 5000 रुपया भेजा। तो पैसा खर्च करके बोली डॉक्टर ने मना किया है गिराने से तो रहने दीजिये। मैंने कहा ठीक है। महीने रह के आई और 15 दिन के बाद से ही मेरे पूरे परिवार में कलह पैदा कर दी। ऐसा हालात बना दी की कोई किसी की मदद न करे। डिलिवरी से 10 दिन पहले ससुर आये बोले भेज दीजिये वही पे करा देंगे, आप खर्च दे दीजिये। मेरा मन नहीं था भेजने का फिर भी 10000 रुपया देकर भेज दिया।

इस वक्त भी लड़का छोड़ कर गई। 2 दिन बाद कॉल आया कि आइये ऑपरेशन के समय आपको रहना पड़ेगा तो मैं गया मेरे पहुँचते ही ससुर अपने घर चला गया, वहाँ मुझे और मेरी सास को और गाँव की 3 औरतों को छोड़कर। मैं वही बैठा था ओटी के सामने रात के 8 बज रहे थे। मेरे सामने से ही नर्स ट्रे में एक बच्चा ले के गई ट्रे को कपडे से ढँक कर। पर बच्चे की ऊँगली ट्रे के बाहर निकली हुई थी तो मैंने सोचा किसी का होगा। तब तक मेरी सास आई और बोली अब नसबंदी भी हो जाए, चलिए साइन कीजिये। मैंने मना किया तो पता नहीं कहा से 4, 5 औरतें 2 मर्द आ गए और मुझसे झगड़ा करने लगे। बोले साइन करो नहीं तो इधर ही काट कर फेंक देंगे तुमको। काफी हुज्जत के बाद भी मुझे साइन करना पड़ा। साइन करने के 20 मिनट बाद नर्स आई, वो ही trey लेके जो लेके गई थी और बोली आपका बच्चा नहीं बचेगा। इसको दिखाइये किसी डॉक्टर को। मैं ये सुनकर वही बेहोश हो गया था, करीब 1 घंटे बाद मुझे होश आया। तभी नर्स ने मेरी सास को बुलाया मेरी सास आते ही बोली आपके लड़के को सरकारी हॉस्पिटल के आईसीयू में रखवाया है जाकर देखिये। मैं रोते हुवे सरकारी हॉस्पिटल गया तो देखा लड़का लावारिस की तरह आईसीयू में पड़ा है। नर्स से पूछा तो वो बोली कि लड़का नहीं बचेगा। उस वक्त मेरे पास 10 रुपया भी नहीं था कि उसको प्राइवेट में दिखाऊं। बस हॉस्पिटल के बाहर बैठ कर उसको मरते हुवे देख रहा था। इसी में सुबह हो गई तब तक नर्स आई बोली लाश ले जाइए, सफाई करना है। वहीं अपनी चांदी की अंगूठी चाय वाले को देकर उससे 400 रुपया क़र्ज़ लिया, लड़के के अंतिम संस्कार के लिए।

जब अंतिम संस्कार करके आया तो देखा हॉस्पिटल में उसका जीजा आया हुवा है और मेरी सास मेरी पत्नी को काजू खिला रही है। मैंने जब पत्नी को बोला कि लड़का मर गया, तो वो बोली ये सब मत सुनाओ भाग्य में नहीं था और लेटे लेटे फिर काजू खाने लगी। इस पर मुझे गुस्सा आया तो मैं उन लोगो को भला बुरा कहने लगा। तब तक मेरा ससुर आया और मुझे धक्का दे कर बोला जाओ तुम्हारे साथ नहीं जायेगी मेरी बेटी और तुमसे खर्च कैसे लेना है मै जानता हूँ। मैं अपने घर आ गया। फिर 10 दिन बाद गया तो वो लोग हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो रहे हैं तो उनके साथ पत्नी को उसके घर छोड़कर अपने घर आ गया।

बीच बीच में जाकर मिलता रहा फिर काफी मसक्कत के बाद 3 महीने पर वो बिदा करने को राज़ी हुए। पर शर्त थी की 20000 दो पत्नी को ले जाओ। हमारा खर्च हुवा है हॉस्पिटल में। तो इस बात पर कुछ लोगो के समझाने के बाद बोला हमको चाहिए बाद में ही देना और चलो एक सादा स्टाम्प पेपर लाये बोले साइन करो। मैंने मना कर दिया साइन करने से। तो मुझे लेकर मुखिया के पास गए और मुखिया के सामने पेपर पर साइन करने को बोले। पेपर में लिखा था मैं दहेज़ नहीं मांगूंगा अपनी पत्नी से, फिर मारपीट नहीं करूँगा। तो मैंने बोला मैंने कब आपसे 1 रुपया माँगा। तो वो दहेज़ वाली लाइन कटवा दिए। उसके 2 दिन बाद पत्नी को अपने घर ले के आया।

उसके 3 महीने बाद ही मेरा ससुर वो पेपर लेके एसपी के पास आवेदन दे दिया तो महिला थाना मेरे घर पे आई और मुझे मेरी पत्नी को मेरी माँ को पापा को थाने लेके गई। वहां पे जब मैंने सारी बात बताई तो महिला पुलिस मेरे सास ससुर को 4 डंडे लगाईं बोली कैसे माँ बाप हो अपनी बेटी का घर उजाड़ रहे हो। मेरी पत्नी से पूछी तुमने सिंदूर क्यों नहीं लगाया। तो वो बोली याद नहीं आया। जबकि सच ये है कि वो मेरे यहाँ कभी सिंदूर नहीं लगाती है। थाने में बांड भर के हम अपने अपने घर चले आये।

उसके बाद हमेशा घर में जेवर पैसा ग़ुम होने लगा। मैं जान कर चुप हो जाता। पर एक बार बोली कि उसका मंगलसूत्र ग़ुम हो गया है तो इस बात पे मेरा मेरी पत्नी से झगड़ा हुआ। उसने फोन करके अपने बाप को बुला लिया और रोड पे अर्धनग्न बाल बिखेर के निकल गई, उसके माँ और बाप चिल्लाने लगे। अभी मैं कुछ बोलूं उससे पहले ही रिक्शा से चले गए। मैं ढूंढने निकला तब तक भूकम्प आ गया 25 अप्रैल 2015 वाला। तो मैं वापस अपने लड़के के पास चला आया। वो अपने मैके जाके 498, 3/4 और 125 का केस कर दी।

जब मैं बाजार के कुछ सभ्य लोगो को लेकर उसके यहाँ गया तो उसका बाप बोला पैसा दो तो ही कुछ बात होगा। मैंने हुज्जत किया तो उन लोगों के तरफ से कुछ आवारा लड़के थे वहा जो मेरे भाई पे हाथ उठा दिए। मेरा ससुर मुझे अकेले में बुला के बोला जिस तरह कहूँ उस तरह करो वरना ज़िंदा चिमनी में फिंकवा दूंगा। जाओ 50000 रुपया ले कर आओ, केस ख़त्म हो जाएगा। बातचीत में ही 6 महीने हो गए और अब तक मैं रोड पे आ चुका था। अपने सेठ से 50000 रुपया क़र्ज़ ले कर दिया तो मेरी पत्नी मेरे साथ आई और उसके 6 महीने बाद उसने केस ख़त्म करवाया।

उसके बाद खुल कर मेरे सामने ही मोबाइल से पता नहीं कहाँ बात करती। मैं मना करता तो धमकी देती कि ज्यादा चिल्लाओ मत वरना फिर भुगतोगे। मैं चुप हो जाता। इधर 2 महीने पहले 3 बजे सुबह वह बस स्टॉप चली गई, मैके जाने के लिए, लड़के को लेकर। 4 बजे मेरी नीन्द खुली तो बाहर से ताला बंद मिला। मैं छत से 10 फीट कूद कर उसको ढूंढने निकला तो वो बस स्टॉप पे मिली। मुझे देख कर भीड़ इकट्ठा करने की कोशिश करने लगी। सब वहां पहचान के थे और सब जानते थे मेरी आप बीती। तो इसको मेरे साथ भेज दिए। आकर बोली मैं अपने मैके में ही रहूंगी, मुझे वहीं खर्च देना। इसीलिए अब लड़के को लेकर जाउंगी जो कि अब 6 साल का है। इसका खर्च तो तुम्हें देना ही होगा। फिर वो इधर दो महीने पहले घर में रखा 1.5 लाख रुपया गहना, कपडा, लड़का,  साथ ले के दिन में 3 बजे के करीब किसी को बुलाकर उसके बाइक पे बैठ के भाग गई है। मैं क्या करूँ? उसको गोली मार दूँ, या खुद को गोली मार लूँ? भारतीय कानून से किसी भी प्रकार की उम्मीद नहीं मुझे, इतना हुआ मेरे साथ। पर कोर्ट बोलेगा खर्च दो उसको, अपनी प्रॉपर्टी में हिस्सा दो उसको, और तुम घंटा बजाओ। ये है हमारा संविधान।

शनिवार, 28 अगस्त 2010

सत्तू की परेशानी कम न हुई, उसे उपभोक्ता अदालत जाना पड़ा, जहाँ उसे राहत मिली लेकिन बहुत कम

आप ने अब तक पढ़ा......
27 सितंबर 2004 को अचानक सत्तू के मोबाइल फोन पर लगातार फोन आने लगे जो सब के सब सचिन तेंदुलकर के लिए थे। यह परेशानी उस के मोबाइल सेवा प्रदाता एयरटेल द्वारा जारी एक विज्ञापन के कारण था। जिस से लोग यह समझ बैठे थे कि विज्ञापन में दिया गया टेलीफोन नं. सचिन का है, जब कि वह सत्तू का है। सत्तू परेशान हो गया। वह किसी को फोन नहीं कर सकता था, जो उसे फोन करना चाहते थे उन्हें उस का फोन हमेशा एंगेज मिल रहा था। उस ने एयरटेल को शिकायत की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। उस ने एक कानूनी नोटिस भी कंपनी को दिलाया। पढ़िए आगे क्या हुआ .......
त्तू की ओर से मैं ने जो नोटिस दिया था उस की कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया कंपनी की ओर से नहीं हुई। सत्तू को कोई राहत दी जाती या उस से कोई बात की जाती उस के स्थान पर वही विज्ञापन दिसंबर में फिर से अखबारों में प्रकाशित कराया गया। उस के बहुत खूबसूरत बड़े पोस्टर जगह जगह लगाए गए बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर यह विज्ञापन चस्पा किया गया। जिस का नतीजा फिर यह हुआ की सत्तू के पास फिर से सचिन तेंदुलकर को पूछने वाले फोन आने लगे। वह फिर उसी तरह की परेशानी में आ गया जैसी उसे 27 सितंबर के बाद लगभग एक माह तक रही थी।
स बीच सत्तू के प्री-पेड खाते में धन कम हो गया था और वैधता की अवधि समाप्त होने को थी। उस ने 9 अक्टूबर 2004 को कैश कार्ड का नवीनीकरण कराया।  मोबाइल फोन पर यह संदेश आ रहा था कि उस की वैधता की अवधि 8 अक्टूबर 2005 है। लेकिन 17 जनवरी 2005 को उस के मोबाइल पर फोन आना जाना बंद हो गए और 'सिम कार्ड कनेक्शन फेल्ड' संदेश आने लगा। सत्तू ने तुरन्त ही एयरटेल के स्थानीय सेवा केंद्र से संपर्क किया तो उसे बताया गया कि उस के सिम कार्ड की वैधता तो 8 नवम्बर 2004 को ही समाप्त हो चुकी थी, 17 जनवरी तक फोन कंपनी की गलती से चालू रहा। इस के बाद भी 60 दिनों तक रिचार्ज नहीं कराए जाने के कारण सिम कनेक्शन फेल्ड हुआ है। हालांकि सेवा केन्द्र से मिले इस उत्तर ने अनेक प्रश्न खड़े कर दिए थे कि 60 दिन भी 7 जनवरी को ही समाप्त हो चुके थे 17 जनवरी तक सिम कैसे चालू रहा? इस से पहले जब 8 नवम्बर 2004 को वैधता समाप्त हुई थी तब क्यों नहीं कनेक्शन एक तरफा नहीं किया गया? इन प्रश्नों का एक ही उत्तर था कि यह सब जानबूझ कर कंपनी द्वारा किया गया था। खैर! सत्तू ने अपने कैश कार्ड पर छपी शर्तों को पढ़ा तो पता लगा कि कैश कार्ड की वैधता की अवधि में उसे पुनः चार्ज कर के अवधि बढ़ाई जा सकती है। नहीं करा सकने पर उस की कुछ सेवाएँ हटा ली जाती हैं लेकिन उपभोक्ता वैधता समाप्ति के 60 दिनों में उसे रिचार्ज करवा कर वैधता को पुनर्स्थापित करवा सकता है। इस के बाद  सिम कार्ड कनेक्शन फेल हो जाने पर भी 30 दिन की अवधि में उपभोक्ता सिम कार्ड एक्टीवेशन शुल्क जमा करवा कर अपने नंबर को चालू करवा सकता है। 
कंपनी के अनुसार उस की वैधता 8 नवम्बर को समाप्त हुई थी तो वह 7 जनवरी तक वैधता को पुनर्स्थापित करवा सकता था। और 6 फरवरी तक वह रिएक्टीवेशन शुल्क जमा करवा कर अपने नंबर को फिर से चालू करवा सकता था। उस ने दिनांक 22 जनवरी 2005 को सिम एक्टीवेशन शुल्क रुपए 113/- जमा करवाया और रसीद प्राप्त कर ली। स्थानीय सेवा केंद्र उस के नंबर को नए सिम कार्ड पर स्थापित करने के लिए प्रयत्न करने लगा। लेकिन लाख प्रयत्नों के बाद भी वह सत्तू का नंबर चालू नहीं करा सका और सेवा केंद्र ने हाथ खड़े कर दिए। कहा कि उस का पुराना नंबर चालू नहीं किया जा सकता। कंपनी एवज में नया नंबर देने को तैयार है साथ ही उसे एक वर्ष तक सिम कार्ड की सारी सेवाएँ निशुल्क यानी मुफ्त प्रदान की जाएंगी। लेकिन सत्तू को पुराने नंबर की एवज में यह सब मंजूर नहीं था। उस ने मुझे आ कर कहा -अंकल जी, अब तो मुकदमा करना ही पड़ेगा। हम ने मुकदमा तैयार कर 4 फरवरी 2005 को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जिस में  असुविधाओँ और व्यवसाय की हानि के लिए पाँच लाख रुपए, बिना अनुमति सत्तू का टेलीफोन नंबर विज्ञापन के लिए उपयोग करने हेतु दस लाख रुपए, शारीरिक व मानसिक संताप के लिए दो लाख रुपए तथा परिवाद का खर्चा रुपए पाँच हजार कुल रुपए 17 लाख 5 हजार की मांग की गई।

पभोक्ता मंच में मुकदमे में तमाम साक्ष्य प्रस्तुत कर देने के उपरांत 24 जनवरी 2006 को मुकदमा बहस के लिए निश्चित हो गया। लेकिन मंच में कभी अध्यक्ष और कभी सदस्य न होने के कारण और कभी अन्य कारणों से बहस न हो सकी। अंत में 11 अगस्त 2010 को बहस संपन्न हुई। जहाँ सत्तू की और से उक्त सभी तथ्य मंच के सामने रखे गए। जब कि कंपनी की तरफ से केवल यह कहा गया कि इन के सिम की वैधता की अवधि समाप्त हो जाने के कारण इन का कनेक्शन शर्तों के मुताबिक समाप्त किया गया है। इस एक पंक्ति के अलावा कंपनी के वकील ने कोई बहस नहीं की। फैसला क्या होना था यह उसी दिन तय हो गया। निर्णय के लिए 23 अगस्त की तारीख निश्चित कर दी गई। 
23 अगस्त 2010 को उपभोक्ता मंच द्वारा दिए गए अपने निर्णय में मंच ने कंपनी को सत्तू के नंबर का अवैध रूप से उपयोग करने का,  सत्तू के लिए परेशानियाँ खड़ी करने का और सेवा में त्रुटि करने का दोषी माना। राहत यह दी कि कंपनी सत्तू का पुराना नम्बर 9829137100 बहाल करे, इस नंबर को बहाल करने में बाधा हो तो कोई नया नंबर दे कर सभी सेवाएँ नियमित करे, और सत्तू को व्यवसाय की क्षति के लिए 10,000/- रुपए असुविधा के लिए 10,000/- रुपए और परिवाद खर्चा रुपए 2000/- कुल बाईस हजार रुपए अदा करे। सत्तू इस फैसले से प्रसन्न नहीं है। उस का कहना है कि उसे बहुत कम क्षतिपूर्ति दिलाई गई है। वह आगे राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग के समक्ष इस निर्णय के विरुद्ध अपील प्रस्तुत करना चाहता है।