@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: मकर संक्रांति
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मंगलवार, 11 जनवरी 2011

'विकल्प' सृजन सम्मान 2011 वरिष्ठ साहित्यकार रघुराज सिंह हाड़ा को

दैनिक भास्कर के कोटा संस्करण में आज यह खबर छपी है -
वरिष्ठ साहित्यकार रघुराजसिंह हाड़ा होंगे सम्मानित 
‘विकल्प’ जन सांस्कृतिक मंच की ओर से नववर्ष एवं मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को दोपहर 1:30 बजे श्रीपुरा स्थित शमीम मंजिल पर ‘सृजन सद्भावना समारोह 2011’ का आयोजन होगा। विकल्प के सचिव शकूर अनवर ने बताया कि इस वर्ष विकल्प का सृजन सम्मान वरिष्ठ साहित्यकार रघुराजसिंह हाड़ा (झालावाड़) को दिया जाएगा। समारोह के मुख्य अतिथि कवि बशीर अहमद मयूख होंगे। अध्यक्षता अंबिकादत्त, प्रो. हितेश व्यास एवं रोशन कोटवी करेंगे। विशिष्ठ अतिथि मेजर डीएन शर्मा ‘फजा’, प्रो. एहतेशाम अख्तर, निर्मल पांडेय, दुर्गाशंकर गहलोत, टी विजय कुमार व रिजवानुद्दीन होंगे। सम्मान समारोह के बाद वृहद काव्य गोष्ठी का आयोजन होगा, जिसमें हाड़ौती अंचल के प्रमुख कवि एवं शायरों का काव्यपाठ होगा। संचालन चांद शेरी एवं हलीम आईना करेंगे। सृजन सम्मान वाचन कृष्णा कुमारी करेंगी तथा सद्भावना वक्तव्य अरुण सेदवाल देंगे।
जी, हाँ! हर मकर संक्रांति पर शकूर 'अनवर' के घर 'शमीम मंजिल' पर एक हंगामा समारोह होता है। शांति के प्रतीक श्वेत कपोतों की उड़ानें, फिर आसमान में इधर-उधर गोते खाती, पेंच लड़ाती पतंगों में शामिल होती शमीम मंजिल की पतंगें, गुड़-तिल्ली की मिठाइयाँ और चावल-दाल की खिचड़ी, हाड़ौती अंचल के किसी कवि-साहित्यकार का सम्मान और काव्यगोष्टी। पिछले वर्ष के इस हंगामा समारोह के चित्र और रिपोर्ट यहाँ मौजूद हैं।
यह चित्र पिछले साल के समारोह का है, जिस में दिखाई दे रहे हैं शकूर 'अनवर', महेन्द्र 'नेह',बशीर अहमद मयूख श्रीमती लता, ऐहतेशाम अख़्तर और चांद शेरी डॉ. कमर जहाँ बेगम का शॉल ओढ़ा कर सम्मान करते हुए। इस में मैं भी हूँ जनाब अब इसे पहेली समझते हुए बताइए कि कहाँ हूँ, पहेली का जवाब इस साल के समारोह की रिपोर्ट में देखियेगा।
ब आप सोच रहे होंगे कि ऊपर वाली खबर में भी दिनेशराय द्विवेदी तो कहीं हैं ही नहीं। तो भाई, इस खबर में सिर्फ कवियों के नाम छपे हैं। बाकी सारे काम तो अपने ही जिम्मे हैं, जैसे पतंग उड़ाना, तिल्ली-गुड़ के लड्डू और खिचड़ी उदरस्थ करना और फोटो उतारना। आ सकें, तो आप भी आएँ, यह एक आनंदपूर्ण दिन होगा।

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

प्रकृति के त्यौहार मकर संक्रांति पर एक स्थाई सद्भावना समारोह

कर संक्रांति का धर्म से क्या रिश्ता है? यह तो आप सब को जानते हुए पूरा सप्ताह हो चुका है। टीवी चैनलों ने इसी बात को बताने में घंटों जाया किया है। ऐसा लगता था जैसे वे इस देश को कोई नई जानकारी दे रहे हों। सब को पता था कि मकर संक्रांति पर उन्हें क्या करना था? घरों पर महिलाओं ने बहुत पहले ही तिल-गुड़ के व्यंजन तैयार कर रखे थे। बाजार के लोगों ने पहले ही दुकानों से चंदा कर दुपहर में भंडारों की व्यवस्था कर ली थी। बच्चे पहले ही पतंगें और माँझे ला कर घर में सुरक्षित रख चुके थे। गाँवों में जहाँ अब भी पतंगों का रिवाज नहीं है, खाती से या खुद ही लकड़ी को बसैलों से छील कर गिल्ली-डंडे तैयार रखे थे। यह सब करने में किसी ने जात और धरम का भेद नहीं किया था। ये सब काम सब घरों में चुपचाप हो रहे थे। पतंग-माँझा बनाने और बेचने के व्यवसाय को करने वालों में अधिकांश मुस्लिम थे। संक्रांति का पर्व उन के घरों की समृद्धि का कारण बन रहा हो कोई कारण नहीं कि उन के यहाँ तिल्ली-गुड़ के व्यंजन न बनते हों।


मकर संक्रांति पर उड़ती पतंगें

लेकिन संक्रांति तो सूर्य की, या यूँ कहें कि समूची पृथ्वी की है।  सूर्य जो हमारी आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है उसे केवल आधुनिक दूरबीनों से सजी वेधशालाओं से ही देखा जा सकता है। लेकिन हमारी धरती सूरज के गिर्द जो परिक्रमा करती है उसे  मापने का तरीका है कि आकाश के विस्तार को हमने 12 भागों में बांट कर प्रत्येक भाग को राशि की संज्ञा दे दी। अब पृथ्वी की परिक्रमा के कारण सूरज आकाश के विस्तार में हर माह एक राशि का मार्ग तय करता  और दूसरी राशि में प्रवेश करता दिखाई है। एक राशि से दूसरी राशि में सूर्य के इस आभासी प्रवेश को हम संक्रांति कहते हैं। अब सूरज न तो हिन्दू देखता है और न मुसलमान और न ही ईसाई। वह तो सभी का है। तो संक्रांति भी सभी की हुई, न कि किसी जाति और धर्म विशेष की। हम ही हैं जो इन प्राकृतिक खगोलीय घटनाओं को अपने धर्मों से जोड़ कर देखते हैं। यूँ यह एक ऋतु परिवर्तन का त्योहार है। शीत की समाप्ति की घोषणा। अब दिन-दिन दिनमान बढ़ता जाता है, सूरज की रोशनी पहले से अधिक मिलने लगती है और शीत से कंपकंपाते जीवन को फिर से नया उत्साह प्राप्त होने लगता है। ऐसे में हर कोई जो भी जीवित है उत्साह से क्यों न भर जाए।

शकूर 'अनवर' के मकान की छत पर पतंग उड़ाती लड़कियाँ

मेरे घर तिल्ली-गुड़ के व्यंजन भी बने और अपनी संस्कृति के मुताबिक शोभा (पत्नी) ने परंपराओं को भी निभाया। दुपहर उस ने मंदिर चलने को कहा तो वहाँ भी गया। बहुत भीड़ थी वहाँ। हर कोई पुण्य कमाने में लगा था। मंदिर के पुजारी का पूरा कुनबा लोगों के पुण्य कर्म से उत्पन्न भौतिक समृद्धि को बटोरने में लगा था। राह में अनेक स्थानों पर भंडारे भी थे। दोनों ही स्थानों पर विपन्न और भिखारी टूटे पड़े थे। सड़कों पर बच्चे बांस लिए पतंगें लूटने के लिए आसमान की ओर आँखें टिकाए थे और किसी पतंग के डोर से कटते ही उस के गिरने की दिशा में दौड़ पड़ते थे।

मकर संक्रांति पर सद्भावना समारोह का एक दृश्य

मारे नगर के उर्दू शायर शक़ूर अनवर के घर मकर संक्रांति पर्व पर खास धूमधाम रहती है। वहाँ इस दिन दोपहर बाद एक खास समारोह होता है जिस में नगर के हिन्दी, उर्दू और हाड़ौती के साहित्यकार एकत्र होते हैं। शक़ूर भाई का पूरा परिवार मौजूद होता है। वे इस दिन किसी न किसी साहित्यकार का सम्मान करते हैं। सब से पहले मकान की तीसरी मंजिल की छत पर जा कर शांति के प्रतीक सफेद कबूतर छोड़े जाते हैं। उस के बाद उड़ाई जाती हैं पतंगें जिन पर सद्भाव के संदेश लिखे होते हैं। फिर आरंभ होता है सम्मान समारोह। सम्मान के उपरांत एक काव्यगोष्टी होती है जो शाम ढले तक चलती रहती है जिस में हिन्दी-उर्दू-हाड़ौती के कवि अपनी रचनाएँ सुनाते हैं। इस मौके पर सब को शक़ूर भाई के घर की खास चाय पीने को तो मिलती ही है। साथ ही मिलती है गुड़-तिल्ली से बनी रेवड़ियाँ और गज़क। शक़ूर भाई के यहाँ संक्रांति पर होने वाले इस सद्भावना समारोह को इस बरस नौ साल पूरे हो गए हैं। शकूर भाई की मेजबानी में इस समारोह का आयोजन  "विकल्प जन सांस्कृतिक मंच" की कोटा नगर इकाई करती है। 


महेन्द्र 'नेह' और शकूर 'अनवर'

ल मैं जब शक़ूर भाई के घर पहुँचा तो कबूतर छोड़े जा चुके थे और पतंग उड़ाने का काम जारी था। जल्दी ही मेहमान पतंगों को एक-एक दो-दो तुनकियाँ दे कर नीचे उतर आए और पतंगों की डोर संभाली शकूर भाई की बेटियों ने। वे पतंगें उड़ाती रहीं। फिर आरंभ हुआ सम्मान समारोह। जिस में कोटा स्नातकोत्तर महाविद्यालय (जो इसी साल से कोटा विश्वविद्यालय का अभिन्न हिस्सा बनने जा रहा है) के उर्दू विभाग की प्रमुख  डॉ. कमर जहाँ बेगम को उन के उर्दू आलोचना साहित्य में योगदान के लिए सद्भावना सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर खुद शकूर अनवर साहब की रचनाओं की पुस्तिका "आंधियों से रहा मुकाबला" का लोकार्पण किया गया। समारोह की अध्यक्षता प्रोफेसर ऐहतेशाम अख़्तर और हितेश व्यास ने की। मुख्य अतिथि वेद ऋचाओं के हिन्दी प्रस्तोता कवि बशीर अहमद मयूख और कथाकार श्रीमती लता शर्मा थीं। बाद में हुई गोष्ठी में  पहले लता जी ने अपनी कहानी 'विश्वास' का पाठ किया और फिर मेजर डी एन शर्मा, अखिलेश अंजुम, अकील शादाब, पुरुषोत्तम यक़ीन, हलीम आईना, डॉ. जगतार सिंह, डॉ. नलिन वर्मा, चांद शेरी, ओम नागर, गोपाल भट्ट, नरेंद्र चक्रवर्ती, ड़ॉ. कंचन सक्सेना, नारायण शर्मा, नईम दानिश, सईद महवी, मुकेश श्री वास्तव, गोविंद शांडिल्य, यमुना नारायण और महेन्द्र नेह आदि ने काव्य पाठ किया। गोष्ठी का सफल संचालन आर.सी. शर्मा 'आरसी' ने किया। विकल्प की ओर से सभी अतिथियों को विकल्प प्रकाशन की पुस्तिकाएँ भेंट की गईं।

अतिथि और शकूर भाई के परिवार की महिलाएँ

कूर भाई का घर जहाँ स्थित है वहाँ आसपास घनी मुस्लिम आबादी है। लगभग दूर दूर तक सभी घऱ मुसलमानों के हैं। लेकिन जब मैं ने देखा तो पाया कि आस पास की शायद ही कोई छत हो जहाँ लड़के, लड़कियाँ, महिलाएँ और पुरुष पतंगें उड़ाने में मशगूल न हों। सभी में संक्रान्ति का उत्साह देखते बनता था। मुझे लगा कि शायद सारे शहर की सब से अधिक पतंगें इसी मोहल्ले से उड़ रही थीं। मैं ने पूछा भी तो शकूर भाई के बेटे ने कहा। संक्रांति पर सब से अधिक पतंगें हमारे ही मुहल्ले से उड़ती हैं। दुनिया बेवजह ही प्रकृति के इस त्योहार को एक धरम की अलमारी के एक खाँचे में बंद कर सजा देना चाहती है।
इस अवसर पर मैं ने कुछ चित्र भी लिए, आप की नज्र हैं।



डॉ. जगतार सिंह, पुरुषोत्तम 'यक़ीन', मैं स्वयं और डॉ. कमर जहाँ बेगम



शकूर 'अनवर', महेन्द्र 'नेह',बशीर अहमद मयूख श्रीमती लता, ऐहतेशाम अख़्तर
और चांद शेरी डॉ. कमर जहाँ बेगम का शॉल ओढ़ा कर सम्मान करते हुए




श्रीमती लता शर्मा अपनी कहानी का पाठ करते हुए


शकूर 'अनवर' की पुस्तिका का लोकार्पण

बुधवार, 14 जनवरी 2009

बड़ी संकरात को राम राम!

आज मकर संक्रांति है। पिछले वर्ष मैं ने मकर संक्रान्ति पर हिन्दी की बोलियों में से एक हाड़ौती बोली में आलेख लिखा था। उसे अधिक लोग नहीं पढ़ पाए थे। कुल तीन टिप्पणियाँ प्राप्त हुई थीं। लेकिन यह बोली व्यापक रूप से राजस्थान के चार जिलों कोटा, बाराँ, बून्दी और झालावाड़ में बोली जाती है। आप का इस से परिचय हो इस लिए आज फिर से इस बोली में अपना आलेख लिखा है। हो सकता है आप को यह बोझिल लगे। लेकिन पढ़िए अवश्य ही। इस से हिन्दी की एक बोली से आप का परिचय तो होगा ही। वैसे थोड़ा प्रयास करेंगे तो समझ भी सभी आएगा। विषय भी आप को रोचक लगेगा। आप पिछले वर्ष का आलेख पढना चाहें तो यहाँ चटका लगा कर पढ़ सकते हैं। उस में हाड़ौती में संक्रान्ति के पर्व से संबंधित परंपराओं का उल्लेख है। साथ वाले मानचित्र में देश और राजस्थान में हाड़ौती की स्थिति दिखाई गई है। 



राम राम! सभी जणाँ के ताईं बड़ी सँकरात को राम राम!!
बहणाँ बरो न मानँ, के जणाँ के ताईं तो राम राम करी। पण जण्याँ के ताईं न करी। पण जणाँन मँ जण्याँ भी तो सामिल छे।

आज बड़ी संकरात छे। बड़ी अश्याँ, के सँकराताँ तो बारा होवे छे, जद जद भी भगवान सूरजनाराण एक रासी सूँ दूसरी मँ परबेस करे, तो उँ सूँ सँकरात खेवे। आसमान मँ बण्या याँ बारा घराँ का सात मालिक बताया। एक घर तो खुद भगवान सूरजनाराण को, एक घर चन्दरमाँ को, अर बाकी मंगळ जी, बुध म्हाराज, बरहस्पति जी, शुक्कर जी अर् शनि म्हाराज का दो-दो घर। 

भगवान सूरजनाराण बरस का बारा म्हींना में हर घर मँ एक म्हीनों रेह छ।  अब शनि म्हाराज व्हाँका ही बेटा छ, ज्याँ का दोन्यूँ घर लाराँ लाराँ ही पड़ छ। जी सूँ दो म्हीनाँ ताईं भगवान सूरजनाराण क ताईं बेटा क य्हाँ रेहणी पड़ छ। अब आज व्ह शनि म्हाराज का घर मँ उळगा तो दो म्हीना पाछे मार्च का म्हीनाँ में ही खड़ेगा। सूरजनाराण एक म्हींना सूँ तो गुरू म्हाराज बरहस्पति का घर म्हँ छा, अब दो म्हींना बेटा शनी का घर म्हँ रहेगा, फेर म्हींनों भर बरहस्पति का घर मं रहेगा। फेर एक म्हीनों मंगळ म्हाराज क य्हाँ, फेर एक म्हीनो शुक्कर जी क य्हाँ, फेर एक म्हीनों बुध जी क य्हाँ। ऊँ क बाद एक म्हीनों चन्दरमा जी का घर रेह र आपणा घरणे फूगगा ज्हाँ फेर एक म्हीनों रेहगा। ऊंक पाछे फेर पाछा ई बुध जी, शुक्कर जी, मंगळ जी, बरहस्पति जी ती घराँ में एक एक म्हींना म्हींना भर रेता हुया जद पाछा बेटा का घरणे पधारेगा तो अगला बरस की बड़ी संकरात आवेगी। 

उश्याँ बरस को आरंभ मंगळ सूँ होणी छावे नँ, जीसूं तेरा अपरेल नँ जद भगवान सूरजनाराण मंगळ म्हाराज का घर मँ परबेस करे तो ऊँ दन बैसाखी मनावे छे। अर ऊं दन ही सूरजनाराण का बरस को आरंभ होवे छे। ऊँ क आस पास ही आपणी गुड़ी पड़वा भी आवे छे। 

दो म्हीनाँ ताईं जद भगवान सूरजनाराण को मुकाम गुरू म्हाराज बरहस्पति जी क य्हाँ रह छ। तो कोई भी आडो ऊँळो काम करबा की मनाही छ। अब आपण परथीबासियाँ का तो सारा काम ही आडा ऊँळा होवे। जीसूँ ही आपण याँ दो म्हीनां क ताईं मळ का म्हीना ख्हाँ छाँ। अर य्हाँ में भगवद् भजन, कथा भागवत अर दान पुण्य का कामाँ क अलावा दूसरा काम न्हँ कराँ। आज ऊ एक म्हींनो पूरो होयो। आज सूँ फेर सारा काम सुरू होता। हर बरस सुरू हो ही जावे छे। पण ईं बरस आज क दन ही बरहस्पति जी खुद भी घरणे फ्हली सूँ ई बिराज रिया छे। अब दोन्यूँ को मिलण अर साथ 10 फरवरी ताँईं रहगो जीसूँ व्हाँ ताईं आडा ऊँळा काम, जासूँ आपण मंगळ काम ख्हाँ छाँ न होवेगा, जश्याँ सादी-ब्याऊ, मुंडन आदी। 

बड़ी संकरात पे अतनो ही खेबो छ!
बड़ी संकरात की फेरूँ घणी घणी राम राम!! 
 
आप को परेमी,
ऊई, दिनेसराई दुबेदी

सोमवार, 14 जनवरी 2008

हाड़ौती का दिनेसराई दुबेदी की आड़ी सूँ सँकरात को राम राम बँचणा जी।

जोग लिखी हाड़ौती का हिरदा, कोटा राजसथान सूँ, सारा जम्बूदीप अर भरतखण्ड का रह्बा हाळाँन् क ताईं दिनेसराई दुबेदी की आड़ी सूँ सँकरात को राम राम बँचणा जी। राम जी की किरपा सूँ य्हां सब मजामं छे। राम जी व्हाँ भी थानँ मजामँ रखाणे।
आज तड़-तड़के ही नारायण परसाद जी को मेल मल्यो, कै हिन्दी कि बोल्याँन् का कतनाँ चिट्ठा परकासित हो रिया छे ? मेल मँ म्हाँकी हाड़ौती क ताईं हारोटी मांड मेल्यो छो। म्हारे तो या बात तीर सी लागी। नाँव बगड़बो खुणनँ छोखो लागे छे। ज्ये मनं तो सोच ली के आज तो अनवरत पे हाड़ौती की पोस्ट जावे ही जावे।
हाड़ौती ख्हाँ छे ?
राजस्थान का नक्सा मं दक्खन-पूरब मं एक गोळ-गोळ उभार दीखे छे। बस या ही हाड़ौती की धरती छे। कोटो, बून्दी, झालावाड़ अर बाराँ याँ चार जिलाँन को जो खेतर छे ऊँ स ई हाड़ौती खे छे।
।। बड़ी सँकरात।।
आज बड़ी सँकरात छे। बड़ी अश्यां के यो म्हाँके राजस्थान मँ संसकर्ति को सबसूँ बड़ो थ्वार छे। खास कर र ब्याऊ स्वाणी छोरियाँ के कारणे। व्हाँ ने सासरा मँ ज्यार कश्यां रह् णी छाइजे या सिखाबा के कारणे घणा सारा नेग (बरत) कराया जावे छे। ज्यां मँ सूँ दो चार अश्याँ छे।
तारा दातुन
छोरियाँ क ताँईं तड़-तड़के ई उठणी पड़े, अर तारा स्वाणी ई दातुन करणी पड़े। बरस मँ एक भी दन चूक नं होणी छावे, नँ तो फेर एक बरस ताँईं बरत करणी पड़े।
मून
छोर् यां ब्याऊ स्वाणी होतां ईं सँकरात सूँ एक बरस ताईं मून रखणी पड़े। मूनी रहबा को अभ्यास कराबा के कारणे। संझ्या की टेम दन आँथतांईं छोर् यां राम राम ख्हेर मूनी हो जावे। जद संझ्या फूले अर तारा हो जावे तो ऊंको मून कोई दूसरो मंतर बोल र छुड़ावे, जदी छोरी बोले, व्हाँ ताईं मूनी ई रेवे। मून छुड़ाबा को मंतर अश्यां छे। .....

आम्बो मोरियो, नीम्बो मोरियो, मोरियो डाढ़्यूँ डार।
सरी किसन जी सेव बैठ्या, राजा राणी कांसे बैठ्या।
झालर बाज घड़ावळ बाजी, संझ्या फूली, तारा होया।
मूनी जी की मून छूटी, मूनी बाबा राम राम।।
ईं का तोड़ मं मून लेबा हाळी छोरी राम राम खेवे, जद मून छूटे। बापड़ी नरी छोरियाँ मून छुड़ाबा के कारणे मून को मंतर जाणबा हाळा नं ढूँढती ही रेवे। ज्याँ ताईं न मले मूँडा प ताळो पटक्याँ रैणी पड़े। म्हारी बा (दादी) के गोडे नरी छोरियाँ मून छुड़ाबा आती। बा न्हं होती तो ऊँ की बाट न्हाळती। छोरियाँ की परेसानी देख र बा नै यो मंतर म्हारे ताँईं सिखायो छो, ज्ये आज थाँ ईँ बता दियो।
चड़ी चुग्गो
मून की ई नाईं बरस भर ताईं रोजीनां एक मुट्ठी चावळ, चावळ न होवे तो ज्यार का दाणा, चड़्यां के ताईं पटकणी पड़े। ईं मं चूक हो जावे तो दूसरे दन दो मुट्ठी देणी पड़े। अश्यां भी कर सके क, म्हींना भर ताईं एक मुट्ठी दाणा रोज का भेळा करे, अर म्हीनो होताँ ईं पूरी तीस मुट्ठी दाणा चड्याँ नें पटके।
ये तीन बरत मनं यां मांड्या। अश्या तीन सौ आठ नेग होवे छे।
सँकरात कश्याँ मनावै?
सँकरात पे ब्हेण-बेट्याँ ने फीर मं बुलावै। फेर जीं के खेत होवे, सारी लुगायां छोखा-छोखा कपड़ा फेर र खेत मं जावे। व्हाँ चावळ-दाळ को, नँ तो बाजरा-दाळ को खीचड़ो गाड़ र आवे। खेताँ में खूब घूमे-फरे के घाघरा की लावणाँ सारा खेत में फर जावे। अश्याँ खी जावे के अश्याँ करबा सूँ लावणी पे खूब फसल होवे अर समर्धी घरणँ आवे छे। सँकरात के बाद सब ब्हेण-बेट्याँ अर भाणजा-भाणज्याँ ने नया कपड़ा-लत्ता दे र बिदा करे छे। संकरात के दन चावळ-दाळ को खीचड़ो बणावै, तिल्ली का लड्डू, पापड़ी, चक्की बणावे। यां नै दान करे, अर या नं ई खावै। घर मं कत्त-बाटी-दाळ को भोजन बणावे। जतनो हो सके गरीबाँ के ताईं ख्वावे, अर दान करे।
सुहागण्याँ
सुहागण्याँ ईं दन चूड़ो, बिन्दी, सिन्दूर, कपड़ा अर सुहाग का सन्दा सामान सासू नँ या सासरा की कोई भी बड़ी सुहागण नै देवे अर आसीस लेवे।
आदमी अर छोरा
आदमी अर छोरा ईं दन गुल्ली-डंडा खेले। पण आज खाल तो देख्याँ-देखी पतंगां उडाबा को चलण हो ग्यो। म्हाँ कै कोटा मँ शायर शकूर अनवर साब क य्हाँ दस-बारा बरस सूँ सँकरात प सिरजन सद्भावना समारोह मनायो जावे छे। जी मेँ सहर का सारा साहित्यकार भेळा होर कविता पढे छे, पतंगाँ उड़ाव छे, तिल्ली की गजक, रेवड़ी, लड्डू, दाळ-चावल की खीचड़ी खावे छे।
उश्याँ हाड़ौती मं ईं जनम्यो अर बावन बरस खडग्या। पण अतनी सी हाड़ौती मांडबा में पसीनो आग्यो, ईं श्याळा मँ भी।
कोसिस रह्गी क अनवरत पै म्हीनाँ मँ क सात दनाँ मँ एक पोस्ट हाड़ौती मँ जावै। पण ईं सूँ हाड़ौती का लोग ज्यादा सूँ ज्यादा जुड़गा जदी या चाल पावगी।
या पोस्ट तो खालिस नाराइण जी को परसाद छे।
नाराइण। नाराइण।