@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: गोत्र आधारित समाज : बेहतर जीवन की ओर-9

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

गोत्र आधारित समाज : बेहतर जीवन की ओर-9

ल्यूइस एच. मोर्गन विशेष ज्ञान रखने वाले ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्हों ने  मनुष्य के प्राक् इतिहास को एक निश्चित क्रम प्रदान करने का प्रयत्न किया। उन्हों ने अपने जीवन का अधिकांश भाग अमरीका के इरोक्वा लोगों के बीच बिताया था। इरोक्वाई लोग उन दिनों न्यूयार्क राज्य में रहते थे और मोर्गन को उन के एक कबीले (सेनेका) ने उन्हें अंगीकार कर लिया था। इन लोगों में नियम था कि एक-एक जोड़ा आपस में विवाह करता था और दोनों पक्षों में से कोई भी आसानी से विवाह को भंग कर सकता था। विवाहित जोड़ों से उत्पन्न संतानों के कारण पिता, माता, पुत्र, पुत्री, भाई, बहन, बुआ, मामा, ममेरे फुफेरे भाई-बहन आदि संबंध वैसे ही थे जैसे भारतीय परिवारों में आम तौर पर मिलते हैं। इरोक्वाई पुरुष अपनी संतानों के साथ अपने भाइयों की संतानों को भी अपने पुत्र-पुत्री कहते थे और अपनी बहन के पुत्र-पुत्रियों को भांजा भांजी कहते थे। उधर स्त्रियाँ अपनी बहनों के पुत्र पुत्रियों को अपने ही पुत्र पुत्री कहती थीं लेकिन अपने भाइयों के पुत्र पुत्रियों को भतीजा भतीजी कहती थी। इस समुदाय में मातृसत्ता प्रचलित थी। 

मोर्गन ने रक्त संबंधियों के इस समूह के लिए लैटिन शब्द gens का प्रयोग किया जो अपने यूनानी पर्याय genos की तरह समान आर्य धातु gan से उत्पन्न हुआ है जिस का अर्थ है जन्म देना। Gens, Genos, गोथिक भाषा का kuni, एंग्लो सेक्सन भाषा का kyn, अंग्रेजी भाषा का kin और संस्कृत भाषा के जन का अर्थ एक ही है और वह है रक्त संबंध या वंश। मोर्गन ने इरोक्वा जनों के, विशेष रूप से सेनेका कबीले के गोत्रों को आरंभिक गोत्रों का क्लासिकीय रूप माना। इस कबीले में आठ गोत्र होते थे, जिन के नाम पशुओं के नाम से भेड़िया, भालू, कछुआ, ऊदबिलाव, हिरन, टिटिहरी, बगुला और बाज थे। इन सभी गोत्रों में कुछ प्रथाएँ प्रचलित थीं। 

न प्रथाओं में सब से पहली थी कि वे अपने दो प्रकार के नेताओं का चुनाव करते थे। एक शांतिकाल का नेता होता था जिसे वे साखेम कहते थे। दूसरा युद्धकाल का नेता होता था। साखेम गोत्र में से ही चुना जाता था। यह पदवी आम तौर पर वंशगत होती थी क्यों कि इसे तुरंत भरना पड़ता था। युद्धकाल का नेता गोत्र के बाहर से भी चुना जा सकता था और यह पद कुछ समय तक रिक्त रह सकता था। लेकिन मातृसत्ता के चलते साखेम का पुत्र उस का स्थान नहीं ले सकता था क्यों कि वह दूसरे गोत्र का सदस्य होता था। लेकिन साखेम का भाई या भांजा अक्सर उस के स्थान पर चुन लिया जाता था। चुनाव में सभी स्त्री-पुरुष भाग लेते थे। लेकिन केवल चुन लेना पर्याप्त नहीं था। यह जरूरी था कि साखेम को शेष सातों गोत्र भी स्वीकार करें, तभी उसे साखेम के पद पर बिठाया जाता था। यह काम इरोक्वा लोगों के पूरे महासंघ की आम परिषद किया करती थी। गोत्र के भीतर साखेम का अधिकार पितातुल्य केवल नैतिक प्रकार का होता था। उस के पास दमन के कोई साधन नहीं थे। साखेम होने के कारण वह सेनेगा कबीले की कबीला परिषद का सदस्य होता था और इरोक्वाई महासंघ की आम परिषद का भी। युद्ध-काल का नेता केवल सैनिक अभियान के दौरान ही आदेश दे सकता था। गोत्र साखेम को और युद्धकाल के नेता को कभी भी पदच्युत कर सकता था और यह निर्णय स्त्री-पुरुष सब मिल कर करते थे। पद से हटाए जाने पर ये गोत्र के सभी सदस्यों के समान सामान्य व्यक्ति या योद्धा रह जाते थे। कबीले की परिषद गोत्र की इच्छा के विरुद्ध भी साखेमों को उन के पद से हटा सकती थी। 

दूसरी विशिष्ठ और बुनियादी प्रथा यह थी कि गोत्र के सदस्य को उसी गोत्र के भीतर विवाह करने की अनुमति नहीं थी। इस नियम को पूरी सख्ती के साथ लागू किया जाता था।  यही वह बंधन था जो गोत्र को एक साथ बांधे रखता था। इस से ऐसा रक्त संबंध उत्पन्न हुआ था कि समुदाय के लोग गोत्र के रूप में संगठित थे। मृत व्यक्तियों की संपत्ति गोत्र के शेष लोगों में बाँट दी जाती थी। हर हालत में संपत्ति को गोत्र  के भीतर ही रहना था। संपत्ति नाम मात्र की होती थी इस कारण से वह गोत्र के भीतर उस के निकट संबंधियों को बाँट दी जाती थी। पुरुष मरता था तो संपत्ति उस के सगे भाई बहनों को और उस के मामा के बीच बाँट दी जाती थी। लेकिन जब कोई स्त्री मरती थी तो संपत्ति उस के बच्चों और उस की सगी बहनों के बीच बाँट दी जाती थी।  लेकिन उस के भाइयों को उस का कोई हिस्सा नहीं मिलता था। क्यों कि वे दूसरे गोत्र के होते थे। पति-पत्नी भी एक दूसरे की संपत्ति प्राप्त नहीं कर सकते थे और बच्चे पिता की संपत्ति प्राप्त नहीं कर सकते थे। (क्रमशः)

5 टिप्‍पणियां:

Bharat Bhushan ने कहा…

मातृसत्तात्मक परिवारों की शुद्ध कार्यप्रणाली का अच्छा विवरण आलेख में मिला है. अगले आलेख की प्रतीक्षा है.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

युद्धकाल व शान्तिकाल में नेतृत्व की आवश्यकता भिन्न होती है, यह तथ्य उन्हें अच्छे से ज्ञात था।

वाणी गीत ने कहा…

रोचक जानकारी !

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

बढ़िया…जानकारी मिल रही है लगातार…

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

अच्छी और ज्ञानवर्धक पोस्ट.