@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: अगस्त 2010

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

बाबू का मिथ और प्रेम की भाषा

बाबूलाल जांगीड की पान की दुकान घर से अदालत के रास्ते में मिडवे है। रोज सुबह वहाँ रुकना, पान खाना और दिन के लिए बंधवाना। इस बीच वहाँ कुछ और लोगों से बात होती है। वहीं एक और बाबू मिलता है। बाबू में दो व्यक्तित्व हैं। जब भी वह फालतू दिखाई देता है तो फुटपाथ पर खड़ा अनजान लोगों को गालियाँ देता हुआ कोसता रहता है। तब लगता है उस का क्रोध दुनिया भर में प्रलय ला देगा। सब को जला देगा। यह दुनिया जल कर भस्म हो जाएगी। फिर ! फिर एक नई दुनिया का निर्माण होगा। उस का यह गालीगलौच वाला प्रवचन अनवरत चलता रहता है। किसी की हिम्मत नहीं कि उसे उस बीच में टोक दे। जब अति होने लगती है तो बाबूलाल जांगीड़ दुकान से उठता है और बाबू को एक मिनट में ठिकाने ले आता है। इस के लिए उसे डाँटना पड़ता है। यह बाबू का एक व्यक्तित्व है।  
बाबू का दूसरा व्यक्तित्व है, वह प्लम्बर का काम करता है। पान की दुकान उस के मिलने की जगह है। जिसे भी उस से काम लेना होता है इसी पान की दुकान पर तलाशता है। बाबू मौके पर जा कर निरीक्षण करता है। जरूरत का सामान बताता है। जरूरत का सामान आ जाने पर नल आदि की मरम्मत कर वापस लौट आता है। उस का घर कोई पाँच किलोमीटर है। रोज सुबह वह घऱ से पैदल ही निकलता है और काम निपटने के बाद पैदल ही घर लौटता है। लेकिन पान की दुकान पर पहुँचने के बाद पैदल चलने का कोटा खत्म। फिर उसे काम के लिए आप को ही ले जाना होगा। वापसी पर सवारी के पैसे देने होंगे। कई बार मैं पहुँचता हूँ तो वह प्रवचन मोड में होता है। मैं जैसे ही उसे आवाज देता हूँ बाबूलाल! वह मुड़ कर देखता है और तुरंत मुस्कुरा देता है। इसी के साथ उस का प्रवचन मोड समाप्त हो जाता है। 
दो दिन पहले भी ऐसा ही हुआ। वह प्रवचन मोड में था। मैं ने आवाज दी तो तुरंत मेरी ओर देखा और मुस्कुरा दिया। फिर उस ने मटके से पानी निकाल कर पिया और मेरे पास आ खड़ा हुआ। पान की दुकान पर उस का राज्य है, उस ने हाथ बढ़ा कर तम्बाकू हथेली में लिया वहीं ट्यूब से चूना ले कर दूर खड़ा हो कर हथेली पर घिसने लगा। तम्बाकू उस ने बहुत सारा लिया था। जांगीड़ कहने लगा अभी बीस मिनट पहले इस ने जर्दा खाया है और फिर ले लिया है। पता नहीं कैसे पचाता है? मैं ने तुरंत प्रतिक्रिया की -क्या फर्क पड़ता है? जर्दा ज्यादा खाने से यही तो होगा दस बरस पहले मर जाएगा। मरने के डर से क्यों जर्दा खाना छोड़ा जाए। मरने के बाद या तो नर्क में जाना होगा या फिर स्वर्ग में दोनों ही जगह जर्दा मिलने से रहा। इस लिए कोटा यहीं पूरा कर ले तो ठीक है। मैं ने यह बात जोर से कही थी जिस से बाबू सुन ले। जांगीड़ समझ रहा था कि वह भड़क जाएगा। लेकिन वह नहीं भड़का पर मेरी बात का उत्तर देने लगा।
रने से क्या डरना भाई साहब! ये तो सब चलता रहेगा। जो भी मरेगा कंकड़ पत्थर बन जाएगा। पता नहीं कब तक ऐसे ही लुढ़कता रहेगा। फिर जब उस का वक्त आएगा फिर जीव बन जाएगा। अब वो कुछ भी बन सकता है। मछली, या पंछी या फिर जानवर या फिर इंसान। इंसान बड़ी मुश्किल से बनता है। अब मैं कोई जुल्म तो नहीं करता? जर्दा ही तो खाता हूँ। किसी का कुछ बिगाड़ता नहीं। यहाँ तो एक से एक बढ़ कर जुल्मी पड़े हैं। चाहते हैं दुनिया भर का माल खुद ही भर लें, कैसे भी? चोरी से, डकैती से, हक मार कर, दूसरे का गला काट कर। पर उस से क्या सब मर जाएंगे एक दिन। सब कंकड़ पत्थर हो जाएंगे। फिर उन पर घन चलेंगे। गरम-गरम डामर के साथ उन को चिपका दिया जाएगा। फिर रोड़ रोलर चलेगा उन पर। जब धरती से चिपक जाएंगे तो लोग उन सब को पैरों से रोंदेंगे। सब यहीँ है। क्या जरूरत है भोले शंकर को नर्क बनाने की। वो तो ये लोग खुद ही अपने लिए बना कर रखे हैं। 
जांगीड़ की पान की दुकान और पास खड़ा बाबू
स की इस बात में कहीं भी प्रवचन नहीं था। कोई गाली-गलौच नहीं थी। उस की अपनी सोच थी जिसे उसे किसी ने सिखाया नहीं था और न ही उस ने कहीँ इसे पढ़ा था। उस के खुद के अनुभव ने एक मिथ का सृजन कर दिया था। जिसे वह स्वयं सच मानने लगा था। मैं ने उसे पूछा -फिर भोले शंकर की क्या भूमिका है? उस की क्या भूमिका होगी? वह सिर्फ देखता है और आनंद लेता है। उसे थोड़े ही कुछ करने की जरूरत है।
जांगीड़ मुझे कहता है -भाई साहब, यह आप को बहुत मानता है। आप के आवाज देते ही इस का फितूर भाग जाता है और ज्ञान की बातें करने लगता है। मैं ने कहा -उस का राज है। वह सिर्फ प्रेम चाहता है। ऐसा प्रेम जिस में न उसे कोई चाह है और न मुझे कोई चाह। बस जब भी एक दूसरे को दिखाई दे जाते हैं दोनों के अंदर प्रेम उपजने लगता है। शायद वह प्रेम की इस भाषा को समझता भी है।

रविवार, 29 अगस्त 2010

"कुण्ठा और क्रोपाटकिन" यादवचंद्र के प्रबंध काव्य "परंपरा और विद्रोह" का पंचदश सर्ग


यादवचंद्र पाण्डेय
यादवचंद्र पाण्डेय के प्रबंध काव्य "परंपरा और विद्रोह" के  चौदह सर्ग आप अनवरत के पिछले कुछ अंकों में पढ़ चुके हैं। अब तक प्रकाशित सब कड़ियों को यहाँ क्लिक कर के पढ़ा जा सकता है। इस काव्य का प्रत्येक सर्ग एक पृथक युग का प्रतिनिधित्व करता है। युग परिवर्तन के साथ ही यादवचंद्र जी के काव्य का रूप भी परिवर्तित होता जाता है।  इसे  आप इस नए सर्ग को पढ़ते हुए स्वयं अनुभव करेंगे। आज इस काव्य का पंचदश सर्ग "कुंठा और क्रोपाटकिन" प्रस्तुत है ................
* यादवचंद्र *

पंचदश सर्ग
कुंठा और क्रोपाटकिन

साम्य - शांति औ प्रगति, मनुज
जीवन में खोज रहा है
तुम कहते हो-"साम्य ?  असम्भव
ऐसा हुआ कहाँ है
और साम्य के रहते जग में
शान्ति, प्रगति है सपना
वाहियात का मनका ले कर
भ्रमित बुद्धि का जपना
बाइबिल, वेद, कुरान शांति का
स्रष्टा है, गायक है
जब तक मन की शांति नहीं है
समता मन का भ्रम है

शान्ति और साधना अलौकिक
भावों की संज्ञा है
अरे, परिग्रह--लोभी मन का
कलुष नहीं तो क्या है
साम्य वहाँ है जहाँ न्याय है
औ संन्तोष सदन है
जब होता संतोष पास तो
रंक राव के सम है

भौतिक रूप सदा छलता है
प्रज्ञा को औ मन को
स्थित-प्रज्ञ मान लोष्टवत
चलता भौतिक धन को

समता किस की ?  भौतिक सुख की ?
माया है, छलना है
अपने हाथों आग जला कर
उस में खुद जलना है" 
#############################

सच है, अमर बेलि, परजीवी
मिट्टी को क्या जाने
ठेकेदार  भला मरघट का 
जीवन क्या पहचाने

जीवन नहीं समादृत है
आकाश वृत्ति, जप, तप से
शान्ति, प्रगति है जन्म न लेती
कब्रों से, मरघट से

संघर्षों से जो घबड़ाते
शान्ति मांगते जीवन मन की
एक व्यक्ति की शान्ति सरल है
किन्तु कठिन जन-जन की

जब न सुलझता प्रश्न देखते
दुर्बल जन घबड़ाते
भाग खड़े होते जंगल में
या कंकड़ सुलगाते

ऐसे लोग भला जीवन की
गुत्थी खोल सकेंगे ?
जिनसे जग निर्मित है, उन 
तत्वों को तौल सकेंगे

दे कर परहित स्वर्ग, स्वयं हित
रौरव मोल सकेंगे ?
जिन तन से पैदा हैं, उन के 
हित ये बोल सकेंगे

कि ज्ञान और विज्ञान ढूंढता
कारण हरदम फल का
मेधावी हल सदा ढूंढता
जीवन में पल पल का

ध्यान वस्तु से अलग हटा कर
किस का ध्यान धरोगे ?
भाव तत्व से अलग हटा कर
बोलो, कहाँ धरोगे ?

बात अलौकिकता की करने
वाला भी लौकिक है
हीत न्याय में हम-तुम दोनों
चप्पू औ नाविक है
अपरा--परा ब्रह्म की बातें मूरख-रूढ़-शून्य का रोना
व्यक्ति-शास्त्र के शब्द-शब्द पर अब बेकार समय है खोना

2
देती है आवाज जवानी
वीरो, आँखें खोलो ?
होती है कुर्बान जवानी
क्रान्ति अमर हो - बोलो !
उठो, मौत के परकालो,
शेरो-दीवानों, जागो !
बढ़ो, ध्वंस, विस्फोट, प्रलय
अल्हड़ मस्तानो, जागो ?

प्रीत निभाना भूल गई है जुल्मी की सन्तान
इधर बराबर रहे चूमते मौत मजूर-किसान
किन्तु निशा का अन्त कहाँ
हड्डी की जला मशाल !
मादक हाय, बसन्त कहाँ
जाँबाजो ठोको ताल !
आग लगा दो पानी में पत्थर पर दूब जमा दो
परवानो ! इजहार मुहब्बत का तुम आज बयाँ दो
ऋतुपति का सिंहासन दौड़ो, छीन स्वर्ग से ला दो
हँसिये और हथौड़े से तुम दुनिया नई बसा दो
फोड़ो इन्कलाब के गोले
उठ कर दो आवाज
धधक रहे अंगारे जग में
आज करेंगे राज
आज रूढ़ियाँ टूट जायँ
हो जाएँ वे बर्बाद
ताकत है हम में, फिर इस को
कर लेंगे आबाद
बहली गाएँ पोस-पोस कर पण्डित जी सकते हैं
पर, मिहनतकश हम तो उस का दूध न पी सकते हैं

तेरे श्रम को चुरा-चुरा कर वे लाख बनाते आए
नई सभ्यता के उस ने मन लायक महल उठाए

तेरता हुआ मजार किसी के
महलों का आधार
तेरा प्यार हुआ कातिल के
लड़कों का खिलवाड़
तेरा हुआ दुआर, गाँव के 
बाबू का दरबार
तेरा हुआ बथान अभागे
सरकारी घुड़सार
फिर भी खुद को छलता है तू
कह कर बारंबार--
देते कर इसलिए कि हम हैं
जग के पालनहार  ?

दूर-दूर हो कायर दर्शन   गणित क्लीव, बेकार
उन की जीत हुई है रण में   और तुम्हारी हार
स्वार्थ, ऐक्य, पुरुषार्थ वर्ग का   देता उस को जीत
प्रतिद्वन्द्वी निरुपाय वहाँ तब   गाता ऐसे गीत

साधनहीन सदा सपनों से   मन बहलाता है
धर्म, भाग्य, परलोक रचाकर   दुख बिसराता है
निर्बल के बल राम-नाम   सिद्धान्त बताता है
भूल जाय वह कैसे खुद को   सोच न पाता है
जाता छोड़ भाग तब दुनिया   राख रमाता है
या भट्टी के दरवाजे पर    शोर मचाता है
हार जीत के पहलू
उठो, बढ़ो, संग्राम करो
लड़कर लो बदला दुश्मन से
बन्द मिलों का काम करो
सोना हो, ब्रेगन की गोली पर जाकर आराम करो
या प्रतिद्वन्द्वी पूँजीपतियों का तुम काम तमाम करो
क्रान्ति करो, विद्रोह करो
विद्रोही को सरदार  !
बढ़ो किसानो लेकर बर्छे
करो जमीं पर मार !
उठो, खान के मजदूरो
हड़ताल करो हड़ताल !
 छीन न पाओ अगर उन्हें तो 
बनो ध्वंस विकराल !
छीन दूसरों की जो सत्ता अपना पैर जमाता
 मार उसे वापस ले लेना हक क्या पाप कहाता
कौन पेट से जनमा ले कर धरती, अम्बर, सागर
हाँ, वह होता सुखी श्रमिक है फल श्रम का पा-पा कर
फिर यह कैसा मत्स्य न्याय रे, मिहनतवान दुखी क्यों ?
नालायक बेटे धनियों के बोलो, पुष्ट सुखी क्यों ?
या तो वे डाकू है कोई, या कि चोर के जाये ?
नीच लेखकों या कवियों ने क्यों उन के गुण गाये ?
निश्चय होंगे वे हराम के माल बँटाने वाले
चाँदी को टुकड़ों पर कुत्ते, कलम चलाने वाले
तो गद्दारों की गद्दारी का उत्तर शूली है
शोषक के पापों की दरिया उमड़ी-फूली है
जाग, जाग और तरुण किशोरी, बाल-वृद्ध-जवान !
खोलो सीना, बांधो कफनी, ले लो लाल निशान !
आओ खूँ से रंग कर अपने झंडे लाल बनाएँ
मिहनतकश की दुनिया होगी, आओ कसमें खाएँ

शनिवार, 28 अगस्त 2010

सत्तू की परेशानी कम न हुई, उसे उपभोक्ता अदालत जाना पड़ा, जहाँ उसे राहत मिली लेकिन बहुत कम

आप ने अब तक पढ़ा......
27 सितंबर 2004 को अचानक सत्तू के मोबाइल फोन पर लगातार फोन आने लगे जो सब के सब सचिन तेंदुलकर के लिए थे। यह परेशानी उस के मोबाइल सेवा प्रदाता एयरटेल द्वारा जारी एक विज्ञापन के कारण था। जिस से लोग यह समझ बैठे थे कि विज्ञापन में दिया गया टेलीफोन नं. सचिन का है, जब कि वह सत्तू का है। सत्तू परेशान हो गया। वह किसी को फोन नहीं कर सकता था, जो उसे फोन करना चाहते थे उन्हें उस का फोन हमेशा एंगेज मिल रहा था। उस ने एयरटेल को शिकायत की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। उस ने एक कानूनी नोटिस भी कंपनी को दिलाया। पढ़िए आगे क्या हुआ .......
त्तू की ओर से मैं ने जो नोटिस दिया था उस की कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया कंपनी की ओर से नहीं हुई। सत्तू को कोई राहत दी जाती या उस से कोई बात की जाती उस के स्थान पर वही विज्ञापन दिसंबर में फिर से अखबारों में प्रकाशित कराया गया। उस के बहुत खूबसूरत बड़े पोस्टर जगह जगह लगाए गए बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर यह विज्ञापन चस्पा किया गया। जिस का नतीजा फिर यह हुआ की सत्तू के पास फिर से सचिन तेंदुलकर को पूछने वाले फोन आने लगे। वह फिर उसी तरह की परेशानी में आ गया जैसी उसे 27 सितंबर के बाद लगभग एक माह तक रही थी।
स बीच सत्तू के प्री-पेड खाते में धन कम हो गया था और वैधता की अवधि समाप्त होने को थी। उस ने 9 अक्टूबर 2004 को कैश कार्ड का नवीनीकरण कराया।  मोबाइल फोन पर यह संदेश आ रहा था कि उस की वैधता की अवधि 8 अक्टूबर 2005 है। लेकिन 17 जनवरी 2005 को उस के मोबाइल पर फोन आना जाना बंद हो गए और 'सिम कार्ड कनेक्शन फेल्ड' संदेश आने लगा। सत्तू ने तुरन्त ही एयरटेल के स्थानीय सेवा केंद्र से संपर्क किया तो उसे बताया गया कि उस के सिम कार्ड की वैधता तो 8 नवम्बर 2004 को ही समाप्त हो चुकी थी, 17 जनवरी तक फोन कंपनी की गलती से चालू रहा। इस के बाद भी 60 दिनों तक रिचार्ज नहीं कराए जाने के कारण सिम कनेक्शन फेल्ड हुआ है। हालांकि सेवा केन्द्र से मिले इस उत्तर ने अनेक प्रश्न खड़े कर दिए थे कि 60 दिन भी 7 जनवरी को ही समाप्त हो चुके थे 17 जनवरी तक सिम कैसे चालू रहा? इस से पहले जब 8 नवम्बर 2004 को वैधता समाप्त हुई थी तब क्यों नहीं कनेक्शन एक तरफा नहीं किया गया? इन प्रश्नों का एक ही उत्तर था कि यह सब जानबूझ कर कंपनी द्वारा किया गया था। खैर! सत्तू ने अपने कैश कार्ड पर छपी शर्तों को पढ़ा तो पता लगा कि कैश कार्ड की वैधता की अवधि में उसे पुनः चार्ज कर के अवधि बढ़ाई जा सकती है। नहीं करा सकने पर उस की कुछ सेवाएँ हटा ली जाती हैं लेकिन उपभोक्ता वैधता समाप्ति के 60 दिनों में उसे रिचार्ज करवा कर वैधता को पुनर्स्थापित करवा सकता है। इस के बाद  सिम कार्ड कनेक्शन फेल हो जाने पर भी 30 दिन की अवधि में उपभोक्ता सिम कार्ड एक्टीवेशन शुल्क जमा करवा कर अपने नंबर को चालू करवा सकता है। 
कंपनी के अनुसार उस की वैधता 8 नवम्बर को समाप्त हुई थी तो वह 7 जनवरी तक वैधता को पुनर्स्थापित करवा सकता था। और 6 फरवरी तक वह रिएक्टीवेशन शुल्क जमा करवा कर अपने नंबर को फिर से चालू करवा सकता था। उस ने दिनांक 22 जनवरी 2005 को सिम एक्टीवेशन शुल्क रुपए 113/- जमा करवाया और रसीद प्राप्त कर ली। स्थानीय सेवा केंद्र उस के नंबर को नए सिम कार्ड पर स्थापित करने के लिए प्रयत्न करने लगा। लेकिन लाख प्रयत्नों के बाद भी वह सत्तू का नंबर चालू नहीं करा सका और सेवा केंद्र ने हाथ खड़े कर दिए। कहा कि उस का पुराना नंबर चालू नहीं किया जा सकता। कंपनी एवज में नया नंबर देने को तैयार है साथ ही उसे एक वर्ष तक सिम कार्ड की सारी सेवाएँ निशुल्क यानी मुफ्त प्रदान की जाएंगी। लेकिन सत्तू को पुराने नंबर की एवज में यह सब मंजूर नहीं था। उस ने मुझे आ कर कहा -अंकल जी, अब तो मुकदमा करना ही पड़ेगा। हम ने मुकदमा तैयार कर 4 फरवरी 2005 को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जिस में  असुविधाओँ और व्यवसाय की हानि के लिए पाँच लाख रुपए, बिना अनुमति सत्तू का टेलीफोन नंबर विज्ञापन के लिए उपयोग करने हेतु दस लाख रुपए, शारीरिक व मानसिक संताप के लिए दो लाख रुपए तथा परिवाद का खर्चा रुपए पाँच हजार कुल रुपए 17 लाख 5 हजार की मांग की गई।

पभोक्ता मंच में मुकदमे में तमाम साक्ष्य प्रस्तुत कर देने के उपरांत 24 जनवरी 2006 को मुकदमा बहस के लिए निश्चित हो गया। लेकिन मंच में कभी अध्यक्ष और कभी सदस्य न होने के कारण और कभी अन्य कारणों से बहस न हो सकी। अंत में 11 अगस्त 2010 को बहस संपन्न हुई। जहाँ सत्तू की और से उक्त सभी तथ्य मंच के सामने रखे गए। जब कि कंपनी की तरफ से केवल यह कहा गया कि इन के सिम की वैधता की अवधि समाप्त हो जाने के कारण इन का कनेक्शन शर्तों के मुताबिक समाप्त किया गया है। इस एक पंक्ति के अलावा कंपनी के वकील ने कोई बहस नहीं की। फैसला क्या होना था यह उसी दिन तय हो गया। निर्णय के लिए 23 अगस्त की तारीख निश्चित कर दी गई। 
23 अगस्त 2010 को उपभोक्ता मंच द्वारा दिए गए अपने निर्णय में मंच ने कंपनी को सत्तू के नंबर का अवैध रूप से उपयोग करने का,  सत्तू के लिए परेशानियाँ खड़ी करने का और सेवा में त्रुटि करने का दोषी माना। राहत यह दी कि कंपनी सत्तू का पुराना नम्बर 9829137100 बहाल करे, इस नंबर को बहाल करने में बाधा हो तो कोई नया नंबर दे कर सभी सेवाएँ नियमित करे, और सत्तू को व्यवसाय की क्षति के लिए 10,000/- रुपए असुविधा के लिए 10,000/- रुपए और परिवाद खर्चा रुपए 2000/- कुल बाईस हजार रुपए अदा करे। सत्तू इस फैसले से प्रसन्न नहीं है। उस का कहना है कि उसे बहुत कम क्षतिपूर्ति दिलाई गई है। वह आगे राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग के समक्ष इस निर्णय के विरुद्ध अपील प्रस्तुत करना चाहता है।

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

सत्तू उर्फ सत्यप्रकाश गुप्ता, एयरटेल की मोबाइल सेवा और सचिन तेंदुलकर का नंबर

त्तू उर्फ सत्यप्रकाश गुप्ता मेरे एक मित्र का पुत्र है। वह एक नौजवान प्रोफेशनल है, भारतीय जीवन बीमा निगम व डाक बचत योजनाओं के लिए अभिकर्ता तथा सम्पत्ति और वित्तीय सलाहकार के रूप में का काम करता है। उस के बहुत से सेवार्थी हैं जिन्हें वह अपनी सेवाएँ प्रदान करता है। उस की आय में वृद्धि सेवाओं पर टिकी है। वह जितना अधिक काम करेगा उतनी ही उस की आय में वृद्धि होगी। अपने सेवार्थियों से उस का संपर्क उस के मोबाइल फोन पर निर्भर है। सेवार्थी उस से उस के मोबाइल फोन पर संपर्क करते हैं, अपनी जरूरतें बताते हैं और वह दौड़ पड़ता है उन की जरूरतों को पूरी करने के लिए। यदि उस का फोन एक दिन के लिए भी बंद हो जाए तो उस के सेवार्थी परेशान हो उठते हैं। इस लिए वह हमेशा अपने सिम-कार्ड को सक्षम रखता है। जिस से उस के किसी सेवार्थी को परेशानी न हो। वर्ष 2004 में उस के पास ओएसिस ब्रांड की मोबाइल फोन सेवाएँ थीं। इन सेवाओँ को हेक्साकोम इंडिया लिमिटेड ने खरीद लिया और ओएसिस ब्रांड की सेवाएँ एयरटेल के नाम से काम करने लगीं।
सितम्बर 2004 की 27 तारीख की सुबह अचानक सत्तू के मोबाइल फोन की घंटी बजी, उस पर कोई अपरिचित व्यक्ति बोल रहा था - हाय! कैसे हो, 37वीं सेंचुरी के लिए कोंग्रेचुलेशन्स। सत्तू को कुछ समझ नहीं आया, उस ने फोन काट दिया। तुरंत ही दूसरा फोन तैयार था। इस बार कोई लड़की बोल रही थी।  हाय! लवी! मुझे पहले ही पता था इस बार तुम जरूर सेंचुरी बना लोगे .....यह फोन भी उस ने काट दिया। इस के बाद कोई अंग्रेजी पेल रहा था... फोन फिर काटना पड़ा। उसे काटा तो फिर घंटी तैयार थी, और उस के बाद एक और। सत्यप्रकाश को क्रिकेट में अधिक रुचि नहीं थी लेकिन सचिन तेंदुलकर का नाम उस ने न सुना हो ऐसा भी नहीं था। आठ दस फोन काल्स के बाद उसे समझ आ गया था कि ये सब फोन भारत के चहेते क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के लिए आ रहे हैं। वह कुछ फोन करना चाहता था। पर वह फोन लगाता और इच्छित नंबर पर फोन जुड़ता उस के पहले ही घंटी फिर बजा जाती। वह परेशान हो गया। उस ने अपने फोन को बंद कर दिया।  तभी हॉकर अखबार दे कर गया उस ने उसे देखा तो आखिरी पन्ने पर आधे पन्ने का एक विज्ञापन मौजूद था। 

चित्र पर क्लिक कर के इसे बड़ा कर के देखें
स विज्ञापन को देख उसे सारा माजरा समझ आ गया। इस विज्ञापन में जो नंबर छापा गया था, वह सत्तू के मोबाइल फोन नंबर था। सचिन तेंदुलकर ने मार्च 2004 में 37वाँ एक दिवसीय शतक बनाया था और एयरटेल वालों ने उस के मोबाइल नं. के पिछले पाँच नंबरों में थर्टीसेवन हंड्रेड होने से तुक मिला कर इस का उपयोग किया था। उसे बड़ा बुरा लगा। एयरटेल के कर्ता-धर्ताओं ने उन का उपभोक्ता होते हुए भी उस से इस मामले में कुछ नहीं पूछा था, न ही इस की सूचना दी थी कि उस  के मोबाइल नं. का उपयोग किया जा रहा है। उन्हें इस से होने वाली परेशानी से उन्हें कोई मतलब नहीं था। इधर सचिन तेंदुलकर के लिए फोन करने वालों की घंटियाँ लगातार बज रही थीं। यह सिलसिला 10 अक्टूबर तक लगातार चलता रहा। उस के बाद कुछ कम हो गया। अब उस के कुछ सेवार्थियों के फोन के लिए जगह मिलने लगी थी और वे आने लगे थे और वह भी कुछ टेलीफोन कर सकता था। इस परेशानी से बचने के लिए उस ने दिन में कुछ घंटों तक फोन को बंद रखना भी शुरू कर दिया था। लेकिन यह वह लगातार नहीं कर सकता था। उस के व्यवसाय के लिए यह ठीक भी नही था कि उस के  सेवार्थियों  को लिए यह ठीक भी नहीं था कि उन्हें उस का टेलीफोन बंद मिले इस से तो अच्छा था कि वह उन्हें व्यस्त मिले।
स परेशानी से सत्तू ने एयरटेल के कार्यालय में सूचित किया किंतु उन्हों ने उस की कोई मदद नहीं की। आखिर वह मेरे पास पहुँचा। मैने उसे एयरटेल मोबाइल सेवा की कंपनी हेक्साकॉम इंडिया लि. को कानूनी नोटिस भेजने का सुझाव दिया। आखिर हम ने 26अक्टूबर 2004 को कंपनी को एक नोटिस प्रेषित कर शिकायत की और असुविधा के लिए मुआवजा देने की मांग की और यह भी चेतावनी दी कि भविष्य में किसी भी विज्ञापन में सत्तू के मोबाइल नं. का उपयोग न किया जाए।

(लगातार ... आगे की कहानी अगली पोस्ट में ...... )

स्टार्ट-रीस्टार्ट बटन और कज्जली तीज की मेहंदी

रात को इसी ब्लाग की एक पोस्ट टाइप करने में लीन था। दो चरण समाप्त हुए और एक चित्र जरूरत पड़ी जो राँच साल से कंप्यूटर में सहेजा हुआ है, उसे तलाश करने लगा। वह मिला ही नहीं। पोस्ट अधूरी थी। कंप्यूटर उसे तलाश कर ही रहा था कि अचानक बिजली एक चौथाई सैकंड के लिए ट्रिप हुई और कंम्प्यूटर बंद हो गया। यूपीएस तो पिछले छह माह से हमारे कंप्यूटर सप्लायर-सुधारक शैलेन्द्र न्याती के कब्जे में है। वह मेरी ससुराल के कस्बे का है तो हमें जीजा कहता है। हम भी अपने कंप्यूटर का भविष्य साले के हाथों सौंप कर निश्चिंत हैं। वह वैसे भी होशियार और बिलकुल प्रोफेशनल है और जुगाड़ी भी। यूपीएस की बैटरी खत्म हो चुकी थी, उसे बदला जाना था। इस बीच शैलेंद्र का वर्कशॉप कम दुकान अपना स्थान बदल चुकी है। यूपीएस वापस मिलेगा भी या नहीं, इस में अब संदेह है।  
बिजली ट्रिप होने का सीधा प्रभाव हुआ कि कंप्यूटर बंद हुआ। ऑफिस की ट्यूबलाइट वापस रोशनी देने लगी। मैं ने कंप्यूटर का री-स्टार्ट बटन दबाया। कंप्यूटर फिर भी चालू नहीं हुआ। फिर स्टार्ट बटन दबाया लेकिन उस से तो कुछ होना ही नहीं था। फिर रीस्टार्ट बटन दबाया। आखिर कंप्यूटर ने पूरी तरह से चालू होने से मना कर दिया। गड़बड़ कोई एक माह पहले भी हुई थी। तब भी कंप्यूटर जी ने बार बार बटन दबाने के बावजूद चालू होने से मना कर दिया था। तब इन्हें अपनी पत्नी के पीहर यानी साले साहब शैलेंद्र न्याती जी के यहाँ भेजना पड़ा था। वहाँ कोई पाँच मिनट में ही ये चालू हो गये। उन का स्टार्ट बटन सेवानिवृत्त हो चुका था। फिर उस का चार्ज री-स्टार्ट बटन को दिया गया। तब से हमारे कंप्यूटर जी री-स्टार्ट बटन से ही चालू होते रहे हैं। लगता है अब रीस्टार्ट बटन भी अपनी गति को प्राप्त होने को है। शायद उसे ईर्ष्या होने लगी हो कि मेरा अभिन्न साथी सेवानिवृत्त हो कर आराम कर रहा है, तब फिर मैं क्यों काम करूं? मैं ने भी बटनों पर निष्फल प्रयास कर ने के स्थान पर बिस्तर की शरण लेना उचित समझा।
म ने भी राहत की साँस ली और रात जल्दी ही सोने के लिए अपने कमरे की शरण ली। श्रीमती जी जाग ही नहीं रही थीं बैठ कर टीवी देख रही थीं। मेरी हैरानियत तुरंत दूर हो गयी। वे मेहंदी लगाए बैठी थीं, जो मुझे याद दिला रहा था कि कल कज्जली तीज है। वैसे वे सुबह मेरे अदालत जाने के बाद मेहंदी लगा चुकी थीं। लेकिन रंग ठीक से नहीं खिला होने से दुबारा लगा चुकी थीं। मैरे होठों पर मुस्कुराहट आ गई। मैं ने दिन में एक महिला अपर जिला न्यायाधीश को अदालत के इजलास में काम करते हुए देखा था। उन्हों ने दोनों हाथों की उंगलियों से ले कर कोहनी तक खूबसूरत मेहंदी लगाई हुई थी। उन्हों ने रक्षा बंधन के साथ मिले तीन दिनों के अवकाश का अच्छी तरह आनंद लिया था। मैं ने उन के बारे में पत्नी जी को बताया तो तुरंत प्रतिक्रिया हुई कि वे अवश्य अग्रवाल होंगी। यह अनुमान बिलकुल सही था। 
सुबह देखा तो पत्नी जी के हाथों की मेहंदी पूरी तरह रच चुकी थीं। मैं दिन के प्रथम प्रसाधन से लौटा तो श्रीमती जी मेहंदी रचे हाथों से दिन का पहला कॉफी का प्याला लिए हाजिर थीं। उसे निपटा कर अपनी आदत के मुताबिक बाहर गया। अखबार समेट अपने ऑफिस की अपनी कुर्सी पर बैठा। कुछ अखबारों की सुर्खियाँ देखीं और आदतन बिजली के बटन पर हाथ गया जिस की सप्लाई कंप्यूटर को जाती है। फिर सहज ही कंप्यूटर के री-स्टार्ट बटन पर उंगली गई। अरे! यह क्या बटने के दोनों और की सूचक बत्तियाँ हरी और नीली रोशनी में जगमगा रही थीं। रात भर विश्राम कर के री-स्टार्ट बटन ने फिर काम करना आरंभ कर दिया था। नतीजे के तौर पर यह पोस्ट हाजिर है। पर नोटिस मिल चुका है, बटन बदलवाना पड़ेगा। वह मैं पिछले महिने बदलवा चुका होता। पर साले साहब का कहना था कि इस डिब्बे की डिजाइन में फिट होने वाला बटन अब नहीं आता। मैं ने प्रश्न किया था -फिर? तो शैलेन्द्र बोला था - फिर क्या? जुगाड़ करेंगे, नहीं बैठा तो डब्बा ही बदल देंगे। मैं ने कहा डब्बा अंदर के सामान सहित बदलने का क्या? नया पाँच सौ जीबी स्टोरेज, दो जीबी रेम और नए प्रोसेसर वाला रिप्लेसमेंट में दे देंगे, बस बारह हजार देनें पड़ेंगे।  आप की स्पीड भन्नाट हो जाएगी। तब से मैं सोच रहा हूँ कि बारह हजार खर्च किए जाएँ या नहीं ? !!!

बुधवार, 25 अगस्त 2010

माता-पिता बच्चों को यातायात के नियम सिखाएँ!!!

राजस्थान में आज विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के छात्र संघों के चुनाव थे। मेरे नगर कोटा में भी दो विश्वविद्यालयों और तीन पाँच महाविद्यालयों में चुनाव थे। आठ से एक बजे तक मतदान हुआ और फिर मतगणना आरंभ हो गई जो परिणाम आने तक चलेगी। मतदान के कारण सभी महाविद्यालय जो कि नगर के मुख्य मार्गों पर स्थित हैं मतदाता छात्र छात्राओं की भारी भीड़ थी। प्रत्याशियों के समर्थकों में मतदान को लेकर उत्तेजना होना स्वाभाविक है, इस की आशंका तब और अधिक होती है जब कि सभी मतदाताओं की रगों में गर्म ताजा लहू दौड़ता हो। इन सारी संभावनाओं के कारण जिन मार्गों पर महाविद्यालय मौजूद हैं उन पर यातायात रोक कर वैकल्पिक मार्गों की ओर मोड़ा जा रहा था। कोटा में नगर से स्टेशन  जाने के दो मुख्य मार्ग हैं इन में से एक पर कोटा के सर्वाधिक छात्र छात्राओं की संख्या वाले जानकीदेवी बजाज कन्या महाविद्यालय और राजकीय महाविद्यालय कोटा पड़ते हैं। यह मार्ग बंद होने से सारा यातायात एक ही मार्ग पर आ गया। जिस का परिणाम यह हुआ कि मार्ग पर जाम लग गया। 
प ऊपर जो मानचित्र देख रहे हैं इस में नीचे दक्षिण पश्चिमी कोने पर एक काला चौकोर बिंदु आप देख रहे हैं वहाँ मेरा वर्तमान निवास है। जो लाल रेखा है वह मेरा नित्य अदालत जाने और वापस लौटने का मार्ग है। इस में बीच में जो समानांतर हरी रेखा देख रहे हैं उस पर दोनों महाविद्यालय हैं और इस मार्ग पर आज यातायात बंद कर दिया गया था। नतीजे में मुझे नीले रंग के वैकल्पिक मार्ग से जाना पड़ा जिस पर पीले रंग के स्थान पर लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबा जाम था, जिसे पार करने में मुझे पौन घंटा अधिक लगा। वापसी में मैं ने एक अन्य मार्ग चुना जो  इस मानचित्र में नही दिखाया गया है। यह वापसी का मार्ग साढ़े छह किलोमीटर के नियमित मार्ग के स्थान पर साढ़े ग्यारह किलोमीटर का पड़ा पर वहाँ किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आई। कोटा में इस तरह के जाम की स्थिति कभी कभार ही होती है। हाँ चंबल पुल अवश्य अक्सर जाम होता रहता है। उस के लिए एक समानांतर पुल का निर्माण जारी है। उच्चमार्ग के लिए एक अन्य पुल बन रहा है जो निर्माण के दौरान दुर्घटना के कारण अभी बंद सा पड़ा है। कोटा में नगर में यातायात के मार्ग कम हैं और उन के वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध नहीं हैं। उन के बारे में जल्दी ही कोई स्थाई उपचार राज्य सरकार को तलाशना होगा। क्यों कि नगर की आबादी तो निरंतर  बढ़ ही रही है। मैं भी सोच रहा हूँ कि यदि मैं वर्तमान आवास के स्थान पर न्यायालय परिसर के नजदीक ही कोई नया आवास निर्माण कर लूँ तो रोज इस व्यस्त मार्ग से निकलने की फज़ीहत से बच सकूंगा। यातायात के इन अवरोधों के होने पर तुरंत ध्यान महानगरों की ओर जाता है कि कैसे वहाँ लोग रोज लगने वाले यातायात अवरोधों से निपटते होंगे?
वापसी में जब घर मात्र आधा किलोमीटर रह गया था तो एक दस-ग्यारह वर्ष के बालक साइकिल सवार ने सड़क पार की। आधी सड़क वह पार कर चुका था। मैं ने नियमानुसार उस के पीछे से अपनी कार निकालनी चाही। लेकिन तभी उस ने साइकिल वापस मोड़ ली। मेरी कार की गति बहुत धीमी थी। मैं ने अपनी कार को वहीं रोक दिया। बालक ने वापस साइकिल मोड़ कर सड़क पार कर ली तभी मैं आगे बढ़ा। इस समय बालक गलती पर था। सड़क पार करने के लिए एक भी कदम बढ़ा देने पर किसी भी ओर से कोई भी वाहन आने पर वापस लौटने के स्थान पर तेजी से सड़क पार करनी चाहिए। शायद इस नियम को न तो उस के परिजनों ने उसे सिखाया था। विद्यालयो में तो शायद इस नियम को सिखाना उन के पाठ्यक्रम में नहीं रहा होगा। होगा तो उसे बेकार समझ कर बताया नहीं गया होगा। मैं समझता हूँ कि सभी बालकों को जब वे अकेले सड़क पर जाने लायक हो जाते हैं तभी इस नियम और अन्य यातायात के नियम सिखाने की जिम्मेदारी मात-पिता को निभानी चाहिए।   

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

सिंथेटिक मावा/खोया और उस की मिठाइयों का बहिष्कार करें ....

स कुछ देर में तारीख बदलने वाली है। हो सकता है यह आलेख प्रकाशित होते होते ही बदल जाए। नई तारीख रक्षा बंधन के त्यौहार की है। यूँ हमारे यहाँ तिथियाँ सूर्योदय से आरंभ होती हैं। इस कारण कल का सूर्योदय होती ही रक्षाबंधन आरंभ हो जाएगा। हम लोग अपने घरों पर श्रवणकुमार की पूजा करेंगे। घर के हर दरवाजे पर उस का प्रतीकात्मक चित्र बनाया जाएगा। उस की पूजा की जाएगी। उस के बाद रक्षा बंधन आरंभ हो जाएगा। हर बहिन अपने भाई को राखी बांधने के पहले टीका करेगी, फिर रुपया नारियल रख कर वारणे लेगी और मिठाई का डब्बा खोल कर कम से कम एक टुकड़ा मिठाई भाई के मुख में ऱख देगी। भाई ऐसे वक्त पर मना भी नहीं करेगा। 
राखी के त्यौहार पर आने वाली मिठाई में से अधिकांश खोये/मावे की बनी होगी। लेकिन इधर देखने में आ रहा है कि स्थान स्थान पर खोया/मावा पकड़ा जा रहा है जो जाँच पर नकली या खराब निकल रहा है। यहाँ ट्रेन में कल डेढ़ क्विंटल मावा  शौचालय में रखा मिला जो अवैध रूप से कहीं से लाया जा रहा था। अब इस के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने में क्सी को संदेह हो सकता है? सिन्थेटिक दूध से मावा बनाया जा रहा है। सिन्थेटिक मावा या अवधिपार खराब हुआ मावा स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। सरकार की ओर से प्रचार किया जा रहा है कि मावा और उस से बनी मिठाई जाँच-परख के बाद विश्वसनीय होने पर ही खरीदें। लेकिन आम आदमी के पास जाँच का क्या साधन है। वह विश्वास पर जीता है लेकिन क्या कोई भी विश्वास के योग्य है? सिन्थेटिक मावा और दूध का निर्माण केवल मुनाफे के लिए नहीं होता। इस का एक कारण यह भी है कि शुद्ध दूध का उत्पादन मांग से कम है। त्यौहारों पर तो इस की मांग कई गुना बढ़ जाती है। इस मांग की पूर्ति किसी तरह संभव नहीं है। ऐसी हालत में सिंथेटिक दूध और मावे का बनना किसी हालत में नहीं रोका जा सकता।
से रोके जाने का एक हल हम उपभोक्ताओं के पास यह है कि हम मावा/खोया का बहिष्कार आरंभ करें। यह मौजूदा परिस्थितियों में संभव भी है। जब मावा स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन गया है तो ऐसी स्थिति में मावे का सार्वजनिक बहिष्कार कर देना ही बेहतर है। इस से मावे की मांग में कमी आएगी। जब मावे के ग्राहक कम होंगे तो निश्चित रूप से इस का बनना कम हो जाएगा। जिस से दूध की उपलब्धता बढ़ जाएगी। दूध की उपलब्धता बढ़ने से सिन्थेटिक दूध के व्योपार भी फर्क पड़ेगा। मेरा तो यह मानना है कि राज्य सरकारों को रक्षाबंधन जैसे त्योहारों के एक सप्ताह पहले से एक सप्ताह बाद तक मावा/खोया और उस के उत्पादों के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।जिस से मावे का उत्पादन न हो दूध की उपलब्धता बनी रहे। इसी समय में सरकारी विभाग अपनी चौकसी और निरीक्षणों के बढ़ा दें तो इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।
अब सरकार तो सोचेगी तब सोचेगी। हम तो सोच ही सकते हैं कि इस रक्षाबंधन पर न मावा/खोया खरीदेंगे और न उन से बनी मिठाइयाँ। मैं तो पिछले एक वर्ष से यही कर रहा हूँ। मेरे यहाँ मावा/खोया और उस की मिठाई नहीं आती। श्रीमती जी ने उस के विकल्प में दूसरी मिठाइयाँ घर पर ही बना ली हैं। क्या आप भी ऐसा करेंगे कि आज से ही खोया/मावा और उस से बनी मिठाइयाँ बनाना और लाना बंद कर दें?




सभी को रक्षाबंधन के त्यौहार पर हार्दिक शुभकामनाएँ!!!






 ..... व्यंग्य चित्र मस्तान टून्स से साभार

सोमवार, 23 अगस्त 2010

सांसदो के साथ-साथ एम्मेले और कारपोरेटर लोगों की तनख़वाह भी बढ़ानी चाहिए

पेशे से मैं एक वकील हूँ, अपने मुवक्किलों की ओर से अदालत में पैरवी करता हूँ, उन्हें सलाह देता हूँ और इस के अलावा उन की ओर से कुछ अन्य कानूनी काम भी करता हूँ। मेरी आमदनी का जरीया मेरी वकालत ही है। मुकदमे लड़ने के अलावा जो काम हैं उन में से कम से कम आधे कामों के लिए मुझे फीस मिल जाती है जो चालू दर के  मुताबिक होती है। मुकदमे लड़ने के लिए मुझे जो फीस मिलती है वह मुकदमा शुरू होने के वक़्त तय होती है और मुकदमे के दौरान किस्तों में मिलती रहती है। लगभग आधी फीस मुकदमे के आख़िर में जा कर मिलती है। मुकदमे चार-पाँच साल की अवधि से ले कर बीस-तीस वर्ष की अवधि तक चलते रहते हैं। मुकदमा जितना लंबा चलता है, उस मुकदमे में मिलने वाली फीस की वास्तविक कीमत में मोर्चा लगता रहता है। मुकदमे की फीस में मेरे दफ्तर के खर्चे भी शामिल होते हैं जो तय की गई फीस के लगभग आधे के बराबर होते हैं। मैं कभी किसी लंबे चलने वाले मुकदमे के निपट जाने के बाद हिसाब करता हूँ तो पता लगता है फीस में मोर्चा ही रह गया लोहा तो खत्तम। दफ्तर का खर्चा जेब से लगा। लेकिन फिर भी सब कुछ चलता रहता है, रवायत की तरहा। जब किसी मुलाज़िम या  तनख़वाह लेने वाली जमातों की तन्ख़्वाह बढ़ाई जाती है तो बड़ी कोफ़्त होती है। मियाँ मीर तक़ी 'मीर' का ये शैर याद आने लगता है....
कोफ़्त से जान लब पर आई है
हम ने क्या चोट दिल पे खाई है
जिन सांसदों को हम ने चुन के संसद में भेजा, जब उन की तनख़्वाह बढ़ने की चर्चा होने लगी तो हमारी भी जान जलने लगी कि 'आखिर इन की तनख़्वाह क्यों बढ़ाई जा रही है?' ये जान तब तक जलती रही जब तक तनख़्वाह बढ़ नहीं गई। जब तनख्वाह बढ़ने की खबर पढ़ ली तो जान पर ठंडक पड़ी। जब पढ़ लिया कि बेचारों की तनख्वाह पचास हजार भी नहीं थी वह भी अब जा कर हुई है, तो उन पर दया आने लगी। उधर दिल्ली में रहने का खर्चा ही कितना है, कैसे अब तक अपना खर्चा चला रहे होंगे। वो तो ग़नीमत है के जो भी मिलने जाता है कुछ चावल गांठ में जरूर बांध ले जाता है वर्ना दि्ल्ली में रहने के लाले पड़ जाते। सुना है सरकार ने मकान मुहैया करा रखे हैं वर्ना तो किराए का मकान लेने में भी परेशानी आ जाती। एक तो कोई देता नहीं। (स्साला एमपी है बाद में खाली न करे तो, और किराया भी न दे तो क्या कल्लेंगे) ये भी सुना है के उन को रेल, मोटर हवाई जहाज का किराया भी सरकार देती है, वरना होता ये के एक बार दिल्ली चले जाते तो वापस घर कैसे लौटते? या घर आ जाते तो संसद में कैसे पहुँचते? गैरहाजरी लग जाती। शायद तनख्वाह भी कट जाती (मुझे नहीं मालूम कि गैर हाजरी लगने पर उन की तनख़्वाह कटती है या नहीं?)  मुलाज़िम लोगों का जब तनख़्वाह में ग़ुजारा नहीं होता, तो वे बख़्शीश पे ग़ुजारा करते हैं। ऐसा ही कोई जुग़ा़ड़ ये एमपी लोग भी जरूर किया करते होंगे, सब नहीं तो ज़्यादातर ज़रूर किया करते होंगे। 
ब आज कल जितनी महंगाई हो गई है उस में तो पचास हजार भी कहाँ लगेंगे। वे मुलायम और लालू यूँ ही थोड़े ही संसद में उठ-उठ कर पड़ रहे थे। आख़िर कोई तो वज़ह रही ही होगी। सुना है लालू जी ने तो फिर भी घास-वास खाने की आद़त डाल रक्खी है, बेचारे मुलायम क्या करेंगे? उन का ये उठ-उठ पड़ना वाक़ई वाज़िब था। अब खबर आ रही है कि वेतन बढ़ा कर अस्सी हज़ार से कम से कम एक रुपया तो अधिक कर ही दिया जाएगा। वाकई सरकार बड़ी ग़रीब नवाज है। अब लालू-मुलायम जैसों की सोच रही है तो कभी न कभी हमारे लिए सोचने का नंबर आ ही जाएगा, इस अहसास से ही गुदगुदी होने लगती है। तनख़्वाह इतनी कर दी जाए तो फिर सांसद लोगों की थोड़ी तो परेशानी कम हो ही जाएगी और वे शायद अपने वोटरों के बीच ज़्यादा आने लगेंगे। फिर अदालत में भी कुछ चक्कर ज़्यादा लगने लगेंगे। फिर हमें राशन कार्ड दुरुस्त करवाने को शायद कारपोरेटर  को तलाशना न पड़े सांसद जी से ही काम चला लिया करेंगे।  
मुझ से पूछो तो इन की तनख़्वाह कम से कम एक लाख जरूर कर दी जानी चाहिए। इस से बड़े फ़ायदे होंगे। कम तनख़्वाह वालों को अपनी-अपनी तनख़्वाह बढ़ाने में सुभीता हो जाएगा। वे सांसद जी से कह सकेंगे और वे टाल नहीं सकेंगे। अभी तो वे ये कह देते हैं कि हमें ही कितनी तनख़्वाह मिलती है? मैं तो कहता हूँ के एम्मेले लोगों और कारपोरेटरों की तनख़वाह भी बढ़ा देनी चाहिए। मुंसीपेल्टी के सड़क बुहारने वाले, और नाली में घुस कर कचरा निकालने वाले भी अपनी बोलने की आज़ादी का इस्तेमाल कर पाएँगे। अभी तो ठेकेदार उन को सरकारी न्यूनतम मजदूरी का आधा देता है। कहता है बाकी आधी में से मुझे कारपोरेटरों और मुंसीपेल्टी के अफ़सरों का घर जो चलाना पड़ता है। 

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

"मूल्यों की नीलामी" यादवचंद्र के प्रबंध काव्य "परंपरा और विद्रोह" का चतुर्दश सर्ग

यादवचंद्र पाण्डेय के प्रबंध काव्य "परंपरा और विद्रोह" के  तेरह सर्ग आप अनवरत के पिछले कुछ अंकों में पढ़ चुके हैं। अब तक प्रकाशित सब कड़ियों को यहाँ क्लिक कर के पढ़ा जा सकता है। इस काव्य का प्रत्येक सर्ग एक पृथक युग का प्रतिनिधित्व करता है। युग परिवर्तन के साथ ही यादवचंद्र जी के काव्य का रूप भी परिवर्तित होता जाता है।  इसे  आप इस नए सर्ग को पढ़ते हुए स्वयं अनुभव करेंगे। आज इस काव्य का चतुर्दश सर्ग "मूल्यों की नीलामी" प्रस्तुत है ................
* यादवचंद्र *

चतुर्दश सर्ग
मूल्यों की नीलामी
ठोक बजा कर माल देख लो, दुनिया है बाजार
जेब देखना पहले, पीछे डाक बोलना यार
सोना है या मिट्टी है, सब कुछ रख दिया पसार
बोल हमारा अपना होगा-दल्लाली बेकार
 
हर माल मिलेगा छह आना
पण्डित का मन्तर   छह आना
मुल्ला का जन्तर   छह आना 
गिरजा की रानी   छह आना
गंगा का पानी   छह आना 
अल्लाहो अकबर   छह आना
ईसा वो ईश्वर   छह आना
तस्वीर, सुमरनी   छह आना
हर जेब कतरनी   छह आना
गुरुद्वारा का दर   छह आना
बापू का मन्दर   छह आना
काब औ काशी   छह आना
ताजा और बासी   छह आना
हर सस्ता - महंगा   छह आना
 
गीता बाइबिल और क़ुरान का नया नया एडीसन ले लो
पक्की जिल्द, छपाई सुन्दर, गेट-अप में न्यू फैशन ले लो
 
धर्मा-धर्मी लगा दिया है
धरम-करम सब   छह आना
सीता की इज्जत   छह आना
मरियम की अस्मत छह आना
बम्पाट जवानी   छह आना
बहनों का पानी   छह आना
बेजोड़ पतुरिया   छह आना
वल्लाह संवरिया   छह आना
परदे की राधा   छह आना
कनसेसन आधा   छह आना
गालों का चुम्बन   छह आना
सीने की धड़कन   छह आना
बिन ब्याही गोरी   छह आना
औ ब्याही छोरी   छह आना
मिश्री फुलझरियाँ   छह आना
एथेंसी गुड़िया   छह आना
दजला की हूरें   छह आना
पेकिंग की नूरें   छह आना
   लिंकन की बेटी   छह आना
लन्दन का डैडी   छह आना
हर माल मिलेगा   छह आना
 
कम्पनी न घाटा सहने का व्यापार कभी करती है
लेकिन इस युग की मांग सदा दुनिया के आगे धरती है
 
लो छह आना जी   छह आना 
पण्डित अल्लामा   छह आना
बेकूफ हरामा   छह आना 
इतिहास पुरातन   छह आना
साहित्य सनातन   छह आना
मीरा औ तुलसी   छह आना
जयदेव जायसी   छह आना
पातञ्जल - शंकर   छह आना
गोरख तीर्थंकर   छह आना 
विज्ञान चिरंतन  छह आना 
दुनिया का दर्शन   छह आना 
प्लेटो और गेटे   छह आना
सड़कों पर लेटे   छह आना
एलोर अजन्ता   छह आना
वाणी का हन्ता   छह आना
सम्पादक सन्ता   छह आना
 लेखक लेखन्ता   छह आना
पायल पर सरगम   छह आना
मिलता है हरदम    छह आना
बस छह आना जी   छह आना
 
युग की देन जमाना रोये अँखियाँ दीदा खाये
बाँधो बाँध कि आँसू का सैलाब न तीर डुबोये
 
रोमियो खड़ा है    छह आना
ढोला अटका है   छह आना
राधा लहराई   छह आना
जुलियट मुसकाई   छह आना
दिलजानी  लैला   छह आना
 मजनूँ है छैला    छह आना
नौकरी न मिलती   छह आना
डालो है लगती    छह आना
सुश्री शहजादी   छह आना
नौकर संग भागी   छह आना
प्राणों का रिश्ता   छह आना
हर महंगा सस्ता   छह आना
सपनों का नन्दन   छह आना 
कसमों का बन्धन   छह आना
आशा  का दिअना   छह आना
निरमोही सजना   छह आना
निकला कस्साई   छह आना
झुट्ठा हरजाई   छह आना
अब जेब कतरता   छह आना
हाजत में सड़ता   छह आना
जूते है खाता   छह आना
फिल्मी धुन गाता   छह आना
जलने की सर्दी   छह आना
मरने की गर्मी   छह आना
जल गई नगरिया   छह आना
मर गई गुजरिया   छह आना
हर माल यहाँ है   छह आना
 
नई दुकान, नया चौराहा जयरा डग-मग डोले
माल हमारा, बोल तुम्हारे डाक जमाना बोले
 
भाई औ बहना   छह आना
सजनी औ सजना   छह आना
लहठी औ चूरी   छह आना
मन की मजबूरी   छह आना
सिन्दूर सुहागिन   छह आना
लुट गई अभागिन   छह आना
अन्तर अकुलाते   छह आना
दृग जल बरसाते   छह आना
गोदी का ललना   छह आना
पैसों का छलना   छह आना
करुणा मानवता   छह आना
पशुता दानवता   छह आना
दिल के सब रिश्ते   छह आना
हर महंगे-सस्ते   छह आना
 
जंग आँख का छूट जाएगा देख हमारा माल
त्रेता, द्वापर, सतयुग झूठे कलयुग करे कमाल
 
काजी औ हाजी   छह आना
युग-युग का पाजी   छह आना
इंसाफ करारा   छह आना
कानून सियासत   छह आना
संसद औ हाजत   छह आना
दरबार कचहरी   छह आना
जज - लाट - संतरी   छह आना
जीवन का रक्षक   छह आना
फिरता बन भक्षक   छह आना
घर की चौहद्दी   छह आना
दादा की गद्दी   छह आना
 कानून उलट दो   छह आना
हर बात पलट दो   छह आना
 चाँदी का जूता   छह आना
कश्मीरी कुत्ता   छह आना
 
नाग फाँस यह बैंक धव का कोई निकल न पाए
जो आए इस घेरे में बस, यहीं घिरा रह जाए
 
नेता का हमदम   छह आना
गिलबों का अलबम   छह आना
 यह उलटी शोखी   छह आना
हर बात अनोखी   छह आना
जनता की बानी   छह आना
बिड़ला है दानी   छह आना 
चौरा - काकोरी   छह आना
शिमला - मंसूरी   छह आना
जनखों का जोड़ा   छह आना
वीरों का जोड़ा   छह आना
 भूखों पर फायर   छह आना
पूंजीपति नायर   छह आना
जाँबाज कमेरा   छह आना
खूँखार लुटेरा   छह आना
गोली का बढ़ना   छह आना
सीने पर अड़ना   छह आना
असूर्यम्पश्या        छह आना
घनघोर तपस्या   छह आना
सब की बर्बादी   छह आना
फिल्मी आजादी   छह आना
यह लंदन वाला   छह आना
यूएसए वाला   छह आना
और बालस्ट्रीटी   छह आना
सब सिट्टी - पिट्टी   छह आना
बापू औ बेटा   छह आना
सब छोटा - जेठा   छह आना
सब सस्ता - महंगा   छह आना
 लो, लगा दिया है   छह आना
जी, सजा दिया है   छह आना
हाँ लुटा दिया है   छह आना
सरकारी बोली   छह आना
 
सब छह आना सब छह आना सब छह आना 
यादवचंद्र पाण्डेय