@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: साँप सालों पहले निकल गया, लकीर अब तक पीट रहे हैं

शनिवार, 12 जून 2010

साँप सालों पहले निकल गया, लकीर अब तक पीट रहे हैं

साँप तो निकल कर जा चुका है, और जिसे मौका लग रहा है वही लकीर पीट रहा है। जब मामले में अदालत का निर्णय आया तो न्यायपालिका को कोसा जा रहा था, साथ ही दंड संहिता की खामियाँ गिनाई जा रही थीं। निश्चित ही न्यायपालिका का इस में कोई दोष नहीं। उस का काम सरकार द्वारा उस के सामने अभियोजन (पुलिस) द्वारा लाए गए सबूतों और कानून के अनुसार आरोप विरचित करना, मुकदमे की सुनवाई करना और सबूतों के अनुसार दोषी पाए जाने पर अपराधियों को देश के दंड कानून के मुताबिक निर्णय और दंड प्रदान करना है। निश्चित ही न्यायालय ने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है। उस के माथे पर केवल एक कलंक मंढ़ा जा सकता है कि उस ने फैसला करने में 23 साल क्यों लगाए? इस के लिए भी न्यायालय या न्यायपालिका को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह सर्वविदित तथ्य है कि देश में आवश्यकता के चौथाई अधीनस्थ न्यायालय भी नहीं हैं। जिस मामले में 25000 लोगों की मौत हुई हो और उन से कई गुना अधिक बीमार हुए हों, जिस से देश भर की जनता की संवेदनाएँ जुड़ी हों उस मामले में  एक विशेष अदालत का गठन किया जा सकता था, जो केवल इसी मुकदमे की सुनवाई करती। केवल और केवल एक वर्ष में यह निर्णय हासिल किया जा सकता था। इसी तरह एक दो वर्ष में अपील आदि की प्रक्रिया पूर्ण कर दोषियों को दंड दिया जा सकता था। पर लगता है कि सरकार की नीयत ही ठीक नहीं थी। शायद वह चाहती थी कि मामले को जितना हो सके लंबा किया जाए। इतने महत्वपूर्ण मामले को देश में चल रहे लाखों सामान्य फौजदारी मुकदमों की पंक्ति में खड़ा कर दिया। यदि कोई पत्रकार चाहे तो इस मुकदमे के प्रारंभ से ले कर अभी तक की सभी पेशियों की आदेशिकाओं की नकल प्राप्त कर दुनिया को बता सकता है कि 25000 हजार मौतों के लिए जिम्मेदार अभियुक्तों के विरुद्ध मुकदमा किस साधारण तरीके चलाया गया था। 
स फैसले ने साबित किया है कि हमारे देश की संसद और विधानसभाएँ, देश की जनता की सुरक्षा के लिए कितनी चिंतित हैं? उन की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून इतने खोखले हैं कि किसी को इस बात का भय ही नहीं है कि वे उन सुरक्षा नियमों की पालना करें। लेकिन वे क्यों बनाएँ ऐसे कानून जो किसी उद्योगपति को मुनाफा कमाने में रोड़ा पैदा करते हों? आखिर वे ही तो हैं जो सांसदों और विधायकों को चुने जाने के लिए धन उपलब्ध कराते हैं। पूरे पाँच वर्षों तक उन्हें हथेलियों पर बिठाते हैं। फिर क्यों न सांसद और विधायक उन की रक्षा करें। जनता का क्या उस के पास पाँच बरस में एक वोट की ताकत भर है। जिसे किसी भी तरह खरीदा जा सकता है। अब तो उस की भी उतनी जरूरत नहीं है। हालात यह हैं कि किसी पार्टी का उम्मीदवार विधायक बने उन का तो चाकर ही होगा न? यही है हमारे जनतंत्र की हकीकत। यही है हमारा जनतंत्र। देशी-विदेशी पूंजीपतियों और भूपतियों का चाकर। 
क्या था एंडरसन? एक अमरीकन कंपनी का सीईओ ही न। कहते हैं तीस से अधिक कमियाँ पायी गई थी भोपाल युनियन कार्बाइड कारखाने में जो जनहानि के लिए जिम्मेदार हो सकती थीं, इन सब की सूचना एंडरसन साहब को थी। यही कमियाँ इसी कंपनी के अमरीका स्थित कारखाने में भी थीं। अमरीका स्थित कारखाने की कमियों को दूर किया गया लेकिन भारत स्थित कारखाने पर इन कमियों को दूर करने की कोशिश तक नहीं की गई। करे भी क्यों। भारतीय जनता अमरीकी थोड़े ही है, आखिर उस की कीमत ही क्या है? दुर्घटना के बाद एंडरसन भारत आया पकड़ा गया, उसी दिन उस की जमानत भी हो गई और फिर ....... राज्य सरकार के विमान में मेहमान बन कर दिल्ली पहुँचा और वहाँ से अमरीका पहुँच गया। अमरीका ने उसे मुकदमे का सामना करने के लिए भारत भेजने से इनकार कर दिया। अमरीका इनकार क्यों न करे? आखिर एंडरसन का कसूर ही क्या था? 
मरीका की सरकार में इतनी ताकत थी कि उस ने एंडरसन से कारखाने की कमियों को दूर करवा लिया। लेकिन हमारे देश की सरकार और व्यवस्था में इतनी ताकत कहाँ कि वह एंडरसन से यह सब करा सकता। और करा लेता तो शायद 25000 जानें नहीं जातीं और हजारों आजीवन बीमारी से लड़ने को अभिशप्त न होते। यदि एंडरसन रत्ती भर भी जिम्मेदार है तो हमारी सरकारें सेर भर की दोषी हैं, भोपाल हादसे के लिए। 
आज कांग्रेस पर उंगलियाँ उठ रही हैं, उठनी भी चाहिए, वह इस के दोष से नहीं बच सकती। लेकिन उस के बाद की सरकारें और मध्यप्रदेश की वर्तमान सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है। दो बार से मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है। उस ने क्या किया इस मुकदमे में जल्दी निर्णय कराने के लिए? क्यों नहीं वह एक विशेष अदालत इस काम के लिए गठित कर सकती थी। उस ने क्या किया एंडरसन को भारत लाने के लिए। एंडरसन के लिए अदालत ने स्थाई वारंट जारी किया था। मध्यप्रदेश सरकार ने एंडरसन को ला कर अदालत के सामने पेश करने के क्या प्रयास किए? 
म यूँ लकीर पीटते रहे तो कभी जान नहीं सकते कि हमारे उन 25000  भाई-बहनों की मौत और हजारों को जीवन भर बीमार कर देने के लिए कौन जिम्मेदार था। हमें जान लेना चाहिए कि वास्तविक अपराधी कौन है। वास्तविक अपराधी हमारी यह व्यवस्था है जो जनता की सुरक्षा की परवाह नहीं करती। वह उन लोगों की  चिंता करती है जो पूंजी के सहारे जनता की बदहाली और जानों की कीमत पर मुनाफा कूटते हैं, वे चाहे देशी लोग हों या विदेशी। यह व्यवस्था उन की चाकर है। हमें वह व्यवस्था चाहिए जो जनता की परवाह करे, और इन मुनाफाखोरों और उस में अपना हिस्सा प्राप्त करने वाले लोगों पर नियंत्रित रखे।

16 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

25 साल से सोए हुए टी.वी. चैनलों को आज पता चला कि अरे ये तो बहुत बुरा हुआ...इतने साल से भाड़ झोंक रहे थे क्या.

दोगलेपन की भी हद होती है...बस देखना कल फिर भूल जाएंगी..कोई दूसरी स्टोरी आने भर की देर है...hypocrites

Sanjeet Tripathi ने कहा…

aapke likhe hue ek ek harf se sehmat hu, khastaur se is bat se ki यदि एंडरसन रत्ती भर भी जिम्मेदार है तो हमारी सरकारें सेर भर की दोषी हैं, भोपाल हादसे के लिए। ....

mai khud sabse badaa dosshi apne pradesh aur desh ki sarkaro ko manta hu is mudde par....

Baljit Basi ने कहा…

काजल कुमार ठीक कह रहे हैं. मीडिया सनसनी फैलाने में रुचित रहता है. यह भी शासक वर्ग के हित ही पूरता है है.भारतीय शासक वर्ग तो पूरी तरह अमरीकी साम्राज्यवाद के पीछे लगा हुआ है और कार्पोरेट मीडिया इसका जोटीदार.वाम पक्ष ने जब परमाणु बिल पर विरोध प्रकट किया और बाद में हिमायत वापिस ली तो इस मीडिया ने मज़ाक उड़ाया था. अब परमाणु देयता के मसले पर और भी इनका किरदार और भी नगन हो रहा है.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

विचारणीय आलेख

आभार
ब्लाग4 वार्ता प्रिंट मीडिया पर प्रति सोमवार

समयचक्र ने कहा…

विचारणीय बहुत ही भावुक कर देनें वाला आलेख...आभार

M VERMA ने कहा…

सही है

सोते सोते जागे है फिर सो जायेंगे

विष्णु बैरागी ने कहा…

पहले कही बात दुहरा रहा हूँ - सबने मिल कर मारा। अब लाश को घसीट रहे हैं।

विष्णु बैरागी ने कहा…

पहले कही बात दुहरा रहा हूँ - सबने मिल कर मारा। अब लाश को घसीट रहे हैं।

उम्मतें ने कहा…

एंडरसन से पहले सरकारें वाली बात से सहमत !

उम्मतें ने कहा…

एंडरसन से पहले सरकारें वाली बात से सहमत !

Arvind Mishra ने कहा…

सच है अब हम केवल लाठी पीट रहे हैं !

Unknown ने कहा…

लगता है सांप निकलने पर लाठी पीटना हमारा राष्ट्रीय धर्म हो गया है...खून में क्षणिक उबाल फिर सब शान्त.....कैसे बदलेगे उस तरह हालात...आपने बहुत अच्छा लिखा है।

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

‘वास्तविक अपराधी हमारी यह व्यवस्था है जो जनता की सुरक्षा की परवाह नहीं करती। वह उन लोगों की चिंता करती है जो पूंजी के सहारे जनता की बदहाली और जानों की कीमत पर मुनाफा कूटते हैं, वे चाहे देशी लोग हों या विदेशी। यह व्यवस्था उन की चाकर है।’...

सहमत...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

25 वर्ष से कलंक ढो रहे हैं, अब तो ढोना भी असह्य हो चला ।

ghughutibasuti ने कहा…

आपकी बात से सहमत। हमारे देश के नागरिक कितने दुर्भाग्यवान व निरीह हैं जिनकी सरकार उनकी जान की जरा भी कीमत नहीं लगाती।
हो सकता है कि हम कुछ नहीं कर सकते किन्तु ऐसे नेताओं के लिए जिन्दाबाद के नारे लगाने तो बन्द कर ही सकते हैं।
घुघूती बासूती

बेनामी ने कहा…

congrats sir, aapki ye post newspaper min, bahut hi sahi likha hai aapne