@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कौन बनाए खाना ?

सोमवार, 11 जनवरी 2010

कौन बनाए खाना ?

शिवराम की यह कविता आज की समाज व्यवस्था से पैदा हुई एक अनिवार्य स्थिति को प्रदर्शित करती है, पढ़िए और राय दीजिए ......

कौन बनाए खाना ?

  • शिवराम
कौन बनाए खाना भइया

कौन बनाए खाना


जो समधी ने भेजे लड्डू 
उन से काम चलाओ
चाय की पत्ती चीनी खोजो 
चूल्हे चाय चढ़ाओ
ले डकार इतराओ गाओ कोई मीठा गाना
कौन बनाए खाना भइया.....


बेटे गए परदेस 
बहुएँ साथ गईं उन के
हाथ झटक कर के
अपने ही हिस्से में आया घऱ का ताना-बाना
कौन बनाए खाना भइया .....

बेटी गई ससुराल
हमारी आँखें नित फड़कें
पोते-पोती सब बाहर हैं
ऐसे में बतलाओ कैसे होवे रोज नहाना
कौन बनाए खाना भइया
कौन बनाए खाना।
***************



कैसी लगी...?

13 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

कितने ही दरवाजों का सच उकेर दिया है इस रचना में..

Khushdeep Sehgal ने कहा…

द्विवेदी सर,

जहां तक मेरी जानकारी है आप चाय को हाथ भी नहीं लगाते...फिर चाय किसके लिए बनती है...

जय हिंद...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

शिवराम जी को बधाई सुंदर रचना के लिए.

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

शिवरामजी को मेरे तरफ से धन्यवाद कहिये ,बहुत लाजवाब रचना ,जो की अभी भी कहीं-न-कहीं हमारे समाज की तस्वीर ko प्रस्तुत कर रही है.

मज़ा आ गया, भई वाह.

अजय कुमार झा ने कहा…

सर यहां जैसी पड रही है ठंड ,
उसमें हम भी गा रहे यही गाना,
भईया कौन बनाए खाना

अजय कुमार झा

उम्मतें ने कहा…

अच्छी कविता !

Mithilesh dubey ने कहा…

रोज नहाना, बाप रे बाप बड़ा मुश्किल है । अच्छी रचना के बधाई स्वीकार करें....

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सुंदर रचना.

रामराम.

Ashok Kumar pandey ने कहा…

सुन्दर!

ghughutibasuti ने कहा…

सरल, मधुर कविता है।

जिसको भी भूख लगेगी
वही बनाएगा खाना
जिसको लगेगी गन्दगी दुश्मन
वही चाहेगा नहाना!
घुघूती बासूती

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

हंसी खेल में आपने आधुनिक समाज के अपरिहार्य हो चुके दर्द को गहराई से कुरेदा है.

राज भाटिय़ा ने कहा…

कविता मै बुजुर्गो का दर्द झलकता है,बहुत सुंदर
शिवराम जी ओर आप का धन्यवाद

विष्णु बैरागी ने कहा…

यह तो आज के प्रत्‍येक मध्‍यमवर्गीय परिवार का कडवा और पीडादायी सच उजागर किया शिवरामजी ने।