@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: दिन भर व्यस्त रहा, लगता है कुछ दिन ऐसे ही चलेगा

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

दिन भर व्यस्त रहा, लगता है कुछ दिन ऐसे ही चलेगा

ज हड़ताल समाप्ति के दूसरे दिन मैं अदालत सही समय पर तो नहीं, लेकिन साढ़े ग्यारह बजे पहुँच गया था। कार को पार्क करने के लिए स्थान भी मिल गया। लेकिन अदालत में निराशा ही हाथ लगी। एक अदालत में एक ही प्रकृति के ग्यारह मुकदमे लंबित थे। अस्थाई निषेधाक्षा के लिए बहस होनी थी। लेकिन अदालत जाने पर पता लगा कि अदालतों में मुकदमों की संख्या का समानीकरण करने के लिए बहुत से स्थानांतरित किए गए हैं उन में वे सभी शामिल हैं। इन ग्यारह मुकदमों में से सात एक अदालत में और चार दूसरी अदालत में स्थानांतरित कर दिए गए हैं। नई अदालत में जा कर उन मुकदमों को संभाला। इस से एक दिक्कत पैदा हो गई कि अब या तो सारे ग्यारह मुकदमों को एक ही अदालत में स्थानांतरित कराने के लिए आवेदन प्रस्तुत करना होगा। जिस में दो-चार माह वैसे ही निकल जाएंगे, या फिर दोनों अदालतों में मुकदमों अलग अलग सुनवाई होगी। इस से मुकदमों में भिन्न भिन्न तरह के निर्णय होने की संभावना हो जाएगी।। कुल मिला कर मुकदमों के निर्णय में देरी होना स्वाभाविक है।
श्रम न्यायालय का वही हाल रहा वहाँ लंबित तीन मुकदमों में तारीखें बदल गईँ। दो मुकदमे 1983 व 1984 से लंबित हैं। उन में तीन व्यक्तियों की सेवा समाप्ति का विवाद है। एक का पहले ही देहांत हो चुका है, शेष दो की सेवा निवृत्ति की तिथियां निकल चुकी हैं। प्रबंधन पक्ष के वकील के उपलब्ध न होने के कारण आज भी उन में बहस नहीं हो सकी। तीसरे मुकदमे में प्रबंधन पक्ष के वकील के पास उस की पत्रावली उपलब्ध नहीं होने से बहस नहीं हो सकी। श्रम न्यायालय ने एक सकारात्मक काम यह किया कि मुझे पिछले दस वर्षों में अदालत में आने वाले और निर्णीत होने वाले मुकदमों की संख्या का विवरण उपलब्ध करवा दिया। इस से सरकार के समक्ष यह मांग रखने में आसानी होगी कि कोटा में एक और अतिरिक्त श्रम न्यायालय स्थापित किए जाने की आवश्यकता है। कल मिले कुछ ट्रेड यूनियन पदाधिकारी इस मामले को राज्य सरकार के समक्ष उठाने के लिए तैयार हो गए हैं। इस विषय पर आज अभिभाषक परिषद के अध्यक्ष से भी बात की जानी थी। पर वे उन की 103 वर्षीय माताजी का देहांत हो जाने के कारण अदालत नहीं आए थे। अब शायद पूरे बारह दिनों तक वे नहीं आ पाएंगे। कल उन के यहाँ शोक व्यक्त करने जाना होगा। संभव हुआ तो तभी उन से यह बात भी कर ली जाएगी।
अपने दफ्तर में व्यस्त मैं
दालत से घर लौटा तो पाँच बज चुके थे। घर की शाम की कॉफी का आनंद कुछ और ही होता है। उस के साथ अक्सर पत्नी से यह विचार विमर्श होता है कि शाम को भोजन में क्या होगा। हालाँकि हमेशा नतीजा यही होता है कि बनता वही है जो श्रीमती जी चाहती हैं। वे जो चाहती हैं वह सब्जियों की उपलब्धता पर अधिक निर्भर करता है। अक्सर मैं इस विचार-विमर्श से बचना चाहता हूँ। लेकिन बचने का कोई उपाय नहीं है।
शाम सात बजे से दफ्तर शुरू हुआ तो ठीक बारह बजे अपने मुवक्किलों से मुक्ति पाई है। फिर कल की पत्रावलियाँ देखने में एक बज गया। तब यह रोजनामचा लिखने बैठा हूँ। आज ब्लॉग पर कुछ खास नहीं लिख पाया। शाम को मिले समय में मुश्किल से अपने एक साथी का मुस्लिम विवाह पर नजरिया जो उन्होंने लिख भेजा था तीसरा खंबा पर अपलोड कर पाया हूँ। आज बहुत से ब्लाग जो पढ़ने योग्य थे वे भी पढ़ने से छूट गए। चार माह से हड़ताल कर बैठने के बाद अदालतों में काम आरंभ होने का नतीजा है यह। लगता है कुछ दिन और ऐसा ही सिलसिला बना रहेगा।

10 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

-)
आप दोनों की , जो शाम की कोफी के संग रात्रि के भोजन में क्या बनेगा वाली बातचीत होती है उसका पढ़कर
अम्मा और पापा जी की बातें याद हो आयीं ...ओफीस में कार्य करने की तस्वीर भी अच्छी आयी है -- पता लगता है , कैसा
रहता होगा
- सादर, स - स्नेह,
- लावण्या

Udan Tashtari ने कहा…

चलिये, व्यस्त रहना ज्यादा जरुरी है, ब्लॉग पठन तो सुविधानुसार कर लिजियेगा.

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

व्यस्तता अच्छी है वह कहतें हैं न कि खाली दिमाग शैतान का घर.

उम्मतें ने कहा…

पुरानी दिनचर्या बहाल होने लगी है !

Arvind Mishra ने कहा…

खूब मौज हुयी अब काम भी तो हो .....

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत बढिया, रोचक लगा.

रामराम.

निर्मला कपिला ने कहा…

व्यस्त रहिये मगर पत्नि को अपनी पसंद जरूर बता दिया करें इस से पत्नियाँ और उतसाह से अच्छी चीज़ें बनाती हैं शुभकामनायें

राज भाटिय़ा ने कहा…

व्यस्त रहना ही अच्छा है, बाकी यह पत्नियां पुछती तो है, लेकिन अपनी पसंद बताने पर कहेगे कि आज तो मेने यह बनाने की सोची थी, तो बाबा पुछा क्यो... चलिये आप काफ़ी पीये

विष्णु बैरागी ने कहा…

शाम को घर की कॉफी का आनन्‍द सचमुच में कुछ और ही होता है। इसे महसूस किया जा सकता है, बताया नहीं जा सकता।