@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: डॉ. अरविन्द जी मिश्रा, तो सुनिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से शहनाई पर राग मालकौंस

गुरुवार, 4 जून 2009

डॉ. अरविन्द जी मिश्रा, तो सुनिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से शहनाई पर राग मालकौंस

पिछली चिट्ठी "सुनें,राग मालकौंस ! तनाव शैथिल्य से मुक्ति पाने का प्रयास करें"  पर डॉक्टर अरविंद जी मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए फरमाइश की थी ........
ये तो सुन लिया ! किसी और का गाया हुआ है दिनेश जी ? या फिर केवल वाद्ययंत्र से निकला मालकौंस सुनने को मिल सकता है ?
तो फिर देर किस बात की है? सुनिए आप के ही नगर बनारस के हीरक शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई पर राग मालकौंस में यह बंदिश...................
 
यह कैसा भी तनाव मिटा सकती है...
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12 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

वाह! सारा तनाव जाता रहा

डा. अमर कुमार ने कहा…


निःसँदेह, बहुत शान्ति देता है, यह राग ।
पर यह जब तब सुने जाना राग नहीं है, एक ख़ास प्रहर में सुनने की बाध्यता इसको अलोकप्रिय कर रही है ।

डा. अमर कुमार ने कहा…


If I am not mistaken !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बेहद सुँदर -- आनँदम्` आनँदम `

मालकौँस राग मेँ शौर्य और भक्ति का अनोखा सँगम है जहाँ ईश्वर या उस अनजाने तत्त्व से याचना नहीँ किँतु, द्रढता से अपने सत्त्व क समर्पण किया जाता है आलेख अच्छा लगा

-और इन उस्तादोँ के तो क्या कहने !!

- लावण्या

Himanshu Pandey ने कहा…

इसे सुनना निश्चय ही सुखद रहा । वाह उस्ताद !

Smart Indian ने कहा…

बहुत सुन्दर! धन्यवाद!

Arvind Mishra ने कहा…

अनिर्वचनीय आनंद !! वाह ,वाह ,मंत्रमुग्ध हूँ -बहुत बहुत आभार आपका !

उम्मतें ने कहा…

प्रभु मैं तो पहले से ही पगलाया हुआ था ! ... कितने पड़ोसियों /मित्रों को तनाव दे चुका हूं बता नहीं सकता ! मेरी असीमित दुआओं के साथ कुछ बददुआयें भी स्वीकार करें !
डाक्टर अमर कुमार भी बौराये हुओं में से हैं मुझे पता ना था ! उन्हें प्रणाम कहियेगा !

admin ने कहा…

बहुत बहुत धन्‍यवाद।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

भाई बहुत ही लाजवाब राग है और उस्ताद जी के तो क्या कहने?

रामराम.

अजित वडनेरकर ने कहा…

रागों के समय विशेष का महत्व पुराने दरबारी दौर और महफिलों में था। आज जब जी हो कुछ भी सुन लीजिए। सुर मन को तभी अच्छे लगेंगे जब सुनने की आस्था हो। वक्त कोई भी हो, कोई फर्क नहीं पड़ता।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही लाजबाव मजा आ गया सुन कर.धन्यवाद